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Eid Ul Adha Ki Namaz Ka Tarika [ईद-उल-अदहा की नमाज़ का तरीका हिन्दी में]

Eid Ul Adha Ki Namaz Ka Tarika
इस्लाम धर्म में ख़ुशियों से भरा हुआ तेहवार जिसे ईद कहा जाता है साल में दो बार मनाया जाता है! एक ईद मुसलमान Ramadan Mubarak के महीने में 30 दिन रोज़ा रखने के बाद मनाते हैं जिसे Eid Ul Fitr कहा जाता है और एक ईद मुसलमान Eid Ul Fitr के दो महीने दस दिन के बाद मनाते हैं जिसे Eid Ul Adha कहा जाता है!
Eid Ul Adha से हमारी History की एक ऐसी कहानी जुड़ी हुई है जो हमारे ईमान को और भी ज़्यादा मज़बूत बना देती है ये दिन मज़हबे इस्लाम के मानने वालों के लिए बहुत ही अहमियत रखता है क्यूँ के इस दिन मुसलमान अपने ख़ुदा की बारगाह में जानवरों की क़ुरबानी पेश करते हैं! जिस तरह Eid Ul Fitr की नमाज़ पढ़ी जाती है ठीक उसी तरह Eid Ul Adha की भी नमाज़ मुसलमान ईदगाह में जा कर अदा करते हैं तो आईये अब हम अपने अस्ल टॉपिक की तरफ़ बढ़ते हैं और जानने की कोशिश करते हैं के Eid Ul Adha की नमाज़ की नीयत क्या है और उसे कैसे पढ़ा जाता है!
Eid Ul Adha Ki Niyat In Hindi  
नीयत करता हूँ मैं दो रकअत नमाज़ ईद-उल-अदहा की, छः ज़ायेद तकबीरों के साथ, वास्ते अल्लाह ताला के, पीछे इस ईमाम के, मुँह मेरा काबा शरीफ़ के तरफ अल्लाहु अकबर!
Eid Ul Adha Ki Niyat In English  
Niyat Karta Hun Main, Do Rakaat Namaz Eid-Ul-Adha Ki, Chhah Zayed Takbiron Ke Sath, Waste Allah Tala Ke, Pichhe Es Imam Ke, Munh Mera Kaba Sharif Ke Taraf Allahu Akbar!
Eid Ul Adha Ki Niyat In Arabic  
نويت أن أصلي لله تعالى ركعتي صلوة عيد الفطر مع ستة تكبيرات زائدة واجبا لله تعالى متوجها إلي جهة الكعبة الشريفة الله أكبر-
Eid Ul Adha Ki Niyat In Urdu  
نیت کرتا ہوں میں، دو رکعت نماز عید الاضحى کی، چھہ زائد تکبیروں کے ساتھ، واسطے اللہ تعالیٰ کے، پیچھے اس اِمام کے، منہ میرا کعبہ شریف کے طرف اللہ اکبر
Eid Ul Adha Ki Namaz Ka Tarika  
तो आइऐ दोस्तों अब हम ईद-उल-अदहा की नमाज़ पढ़ने का तरीका जानने की कोशिश करते हैं! तो हम आप को दो तरह से बताएंगे! वो भी बिल्कुल आसान लफ़्ज़ों में, ताके आप को समझने में कोई दिक्कत न हो!
पहला तरीका:
1. ईद-उल-अदहा की नमाज़ की नीयत करने के बाद ईमाम तकबीर बोल कर नाफ़ के नीचे हाथ बाँध कर सना पढ़ेगा, हमे भी तकबीर बोल कर हाथ नाफ़ के नीचे बाँध कर सना पढ़ लेना है, इसके बाद तीन ज़ायेद तकबीर होंगी, पहली तकबीर बोल कर हाथ कानो तक उठा कर छोड़ देना है, दूसरी तकबीर बोल कर हाथ कानो तक उठा कर छोड़ देना है, तीसरी तकबीर बोल कर हाथ कानो तक उठा कर बाँध लेना है!
इसके बाद ईमाम केरत करेगा यानी सूरह फ़ातिहा और कोई सूरह पढ़ेगा और रुकूअ सजदह कर के पहली रकअत मोकम्मल हो जाएगी!
2. दूसरी रकअत के लिए खड़े हो कर ईमाम सब से पहले केरत करेगा यानी सूरह फ़ातिहा और कोई सूरत पढ़ेगा, उसके बाद रुकूअ में जाने से पहले तीन ज़ायेद तकबीर होंगी, पहली तकबीर बोल कर कानो तक हाथ उठा कर छोड़ देना है, दूसरी तकबीर बोल कर कानो तक हाथ उठा कर छोड़ देना है, तीसरी तकबीर बोल कर कानो तक हाथ उठा कर छोड़ देना है, यहाँ तक तीन ज़ायेद तकबीर मोकम्मल हो गई! अब इसके बाद बग़ैर हाथ उठाए तकबीर बोल कर रुकूअ में चले जाएँगे! और बस अब आगे की नमाज़ दूसरी नमाज़ों की तरह पढ़ लेना है और सलाम फेर लेना है!
Eid Ul Adha Ki Namaz Ka Tarika Step By Step
?1. सबसे पहले नीयत करे!
?2. फिर कानो तक हाथ उठाए और अल्लाहु अकबर कह कर नाफ़ के नीचे बाँध ले!
?3. सना पढ़े!
?4. फिर कानो तक हाथ उठाए और अल्लाहु अकबर कहते हुए लटका दे!
?5. फिर कानो तक हाथ उठाए और अल्लाहु अकबर कहते हुए लटका दे!
?6. फिर कानो तक हाथ उठाए और अल्लाहु अकबर कह कर नाफ़ के नीचे बाँध ले!
?7. फिर ईमाम तउज़ और तस्मिया आहिस्ता पढ़ कर सूरह फ़ातिहा और कोई सूरह बुलंद आवाज़ से पढ़े फिर रुकूअ व सुजूद कर के पहली रकअत मोकम्मल कर ले!
?8. फिर दूसरी रकअत में ईमाम सूरह फ़ातिहा और कोई सूरह बुलंद आवाज़ से पढ़े!
?9. फिर तीन बार कानो तक हाथ उठा कर अल्लाहु अकबर कहें और हाथ न बाँधे और चौथी बार बग़ैर हाथ उठाए अल्लाहु अकबर कहते हुए रुकूअ में चले जाएं!
?10. बाक़ी नमाज़ दूसरी नमाज़ों की तरह पूरी करें और सलाम फेर लें!
Eid-Ul-Adha Ki Namaz Kis Par Wajib Hai?
ईद-उल-अदहा की नमाज़ पढ़ना सारे लोगों पर वाजिब नही है बल्के सिर्फ़ उन्ही लोगों पर पढ़ना वाजिब है जिन पर जुम्मा की नमाज़ वाजिब है! ईद-उल-अदहा की नमाज़ में न ही अज़ान है और न ही अकामत है!
Eid-Ul-Adha Ki Namaz Ka Waqt Kya Hai?
ईद-उल-अदहा की नमाज़ का वक़्त सूरज के ब-क़दरे एक नेज़ह बुलंद होने यानी सूरज निकलने के 20 मिनट के बाद से निस्फुन नहार शरई तक है मगर ईद-उल-अदहा की नमाज़ में जल्दी करना मुस्तहब है!
Eid-Ul-Adha Ki Fazilat In Hindi
1.अल्लाह के नबी प्यारे आक़ा सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया के “यौमुन नहर” यानी दसवीं ज़िल्हिज्जा में इब्ने आदम का कोई अमल ख़ुदा के नज़दीक खून बहाने यानी क़ुरबानी करने से ज़्यादह प्यारा नहीं और वो जानवर क़यामत के दिन अपने सींघ और बाल और खुरों के साथ आएगा और क़ुरबानी का खून ज़मीन पर गिरने से पहले ख़ुदा के नज़दीक मक़ामे क़ुबूल में पहुँच जाता है लेहाज़ा इस को ख़ुश दिली से करें(जामे तिर्मिज़ी)
2.अल्लाह के नबी प्यारे आक़ा सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया के जिसने ख़ुश दिली से तालिबे सवाब हो कर क़ुरबानी की वो आतिशे जहन्नम से हिजाब यानी रोक हो जाएगी (अल मोआजमूल कबीर)
3. अल्लाह के नबी प्यारे आक़ा सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया के जो रुपया ईद के दिन क़ुरबानी में खर्च किया गया उस से ज़्यादा कोई रुपया प्यारा नही (अल मोआजमूल कबीर)
4. अल्लाह के नबी प्यारे आक़ा सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया के जिस में ताक़त हो और कुर्बानी न करे वो हमारी ईदगाह के क़रीब न आए (सुन्न इब्ने माजा)
5. इब्ने माजा ने ज़ैद बिन अरक़म रज़ीअल्लाहो ताला अन्हो से रिवायत, की के सहाबा रज़ीअल्लाहो ताला अन्हो ने अर्ज़ की, या रसुल्लाह सल्लाहो अलैहि वसल्लम ये कुर्बानियाँ क्या हैं, फरमाया:”तुम्हारे बाप इब्राहिम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है” तो लोगों ने अर्ज़ की या रसुल्लाह सल्लाहो ताला अलैहि वसल्लम हमारे लिए इसमें क्या सवाब है तो आप ने फरमाया:”हर बाल के मोक़ाबिल नेकी है अर्ज़ की उन का क्या हुक्म है फरमाया:”उन के हर बाल के बदले में नेकी है”
6. हज़रत सैय्यदना बुरैदा रज़ीअल्लाहो ताला अन्हो से मरवी है के हुज़ूर पुर नूर सल्लाहो अलैहि वसल्लम ईद-उल-फित्र के दिन कुछ खा कर नमाज़ के लिए तशरीफ़ ले जाते थे और ईद-उल-अदहा के दिन नहीं खाते थे जब तक नमाज़ से फ़ारिग न हो जाते (सुनन तिर्मिज़ी)
7. हज़रते सैय्यदना माज़ बिन जबल रज़ीअल्लाहो ताला अन्हो से मरवी है, फरमाते हैं: जो पाँच रातों में शब बेदारी करे यानी रातों को जाग कर अल्लाह ताला की इबादत में गुज़ारे उसके लिए जन्नत वाजिब हो जाती है! ज़िल्हिज्जा शरीफ़ की आठवीं, नौवी और दसवीं रात यानी इस तरह तो ये तीन रातें हो गईं और चौथी ईद-उल-फित्र की रात, पाँचवी शाबान की पन्द्रहवीं रात यानी शबे बारात (अत्तरगिब वत तरहिब)
ईद के दिन हमे क्या क्या करना चाहिए?
ईद-उल-अदहा के दिन नीचे दिए गए सभी काम करना मुस्तहब है और हमे चाहिए के हम ये सारे काम करें ताके हमे ख़ूब ख़ूब सवाब मिले!
?1. हजामत बनवाना (यानी ज़ुल्फ़ें बनवाएँ न के गैरों जैसे बाल)
?2. नाख़ून काटना
?3. ग़ुस्ल करना अच्छी तरह
?4. मिस्वाक करना
?5. अच्छे कपड़े पहनना, नया हो तो नया वरना धुला हुआ कपड़ा
?6. ख़ुशबू लगाना
?7. अँगूठी पहनना
?8. फजर की नमाज़ मस्जिद मोहल्ला में पढ़ना
?9. नमाज़े ईद-उल-अदहा ईदगाह में अदा करना
?10. ईदगाह पैदल जाना
?11. नमाज़े ईद-उल-अदहा के लिए एक रास्ते से जाना और दूसरे रास्ते से वापस आना
?12. ख़ुशी ज़ाहिर करना
?13. आपस में मुबारक बाद देना
?14. ईद-उल-अदहा के नमाज़ के बाद हाथ मिलाना और गले मिलना
?15. ईद-उल-अदहा के नमाज़ के लिए जाते हुए रास्ते में बुलंद आवाज़ से तकबीर कहना
?16. ईद-उल-अदहा के नमाज़ से पहले कुछ न खाए चाहे क़ुर्बानी करे या न करे और अगर खा लिया तो कोई कराहत नहीं!
तकबीरे तशरीक़ किसे कहते हैं?
तकबीरे तशरीक़: अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला ईलाहा इल्लाल्लाहो वाल्लाहो अकबर, अल्लाहु अकबर, व लिल्लाहिल हम्द!
तकबीरे तशरीक़ के अहकाम
1. नौवी ज़िल्हिज्जा की फजर से तेरहवीं की असर तक पाँचों वक़्त की फ़र्ज़ नमाज़े जो मस्जिद में जमाते मुस्तहबा के साथ अदा की गई उन में एक बार बुलंद आवाज़ से तकबीर कहना वाजिब है और तीन बार कहना अफ़ज़ल है!
2. तकबीरे तशरीक़ सलाम फेरने के बाद फ़ौरन कहना वाजिब है! यानी जब तक कोई ऐसा काम न किया हो के उस पर नमाज़ की बेना न कर सके जैसे अगर मस्जिद से बाहर निकल गया या जान बूझकर वज़ू को तोड़ दिया या चाहे भूल कर ही कलाम किया तो तकबीर साकित हो गई और अगर बला क़स्द वज़ू टूट गया तो कह ले!
3. तकबीरे तशरीक़ उस पर वाजिब है जो शहर में मोक़ीम हो! या जिसने इस मोक़ीम की इक़तिदा की! वो इक़तिदा करने वाला चाहे मुसाफ़िर हो या गाँवों का रहने वाला और अगर उसकी इक़तिदा न करे तो उन पर यानी मुसाफ़िर और गाँवों के रहने वाले पर वाजिब नही है!
4. मोक़ीम ने अगर मुसाफ़िर की इक़तिदा की तो मोक़ीम पर तकबीरे तशरीक़ वाजिब है मगर उस मुसाफ़िर ईमाम पर वाजिब नहीं!
5. नफ़्ल नमाज़, सुन्नत नमाज़ और वित्र की नमाज़ के बाद तकबीर कहना वाजिब नही!
6. जुम्मा के नमाज़ के बाद तकबीर कहना वाजिब है और नमाज़े बक़रीद के बाद भी तकबीर कह ले!
7. मसबुक यानी वो शख्श जिस की एक या दो रकअत नमाज़ छूट गई हों तो उस पर भी तकबीर का कहना वाजिब है मगर जब ख़ुद सलाम फेरे तो उस वक़्त कहे!
8. मुंफरीद यानी अकेला नमाज़ पढ़ने वाले पर वाजिब नही मगर कह ले के साहेबैन यानी ईमाम अबु यूसुफ़ और ईमाम मोहम्मद के नजदीक उस पर भी वाजिब है!
9. ग़ुलाम पर तकबीरे तशरीक़ वाजिब है और औरतों पर वाजिब नही है अगर चे जमाअत से नमाज़ पढ़ी हाँ अगर मर्द के पीछे औरत ने नमाज़ पढ़ी और ईमाम ने उसके ईमाम होने की नीयत की तो औरत पर भी वाजिब है मगर आहिस्ता कहे! यूँही जिन लोगों ने बरहना नमाज़ पढ़ी उन पर भी वाजिब नही, अगर चे जमाअत करे के उनकी जमाअत जमाअते मुस्तहबा नही! (दुर्रे मुख़्तार)
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