एतिकाफ क्या है ?
अल्लाह तआला ने मुसलमानों को बहुत से इबादत के तरीके बताये है जिसमे कुछ फ़र्ज़ है तो कुछ वाजिब और उनमें कुछ तरीके बेहद खास और कुछ उम्दा शान रखते है जिसमे से एक है एतिकाफ : एतिकाफ रमज़ान की तमाम इबादतों में एक बेहद ख़ास इबादत है | एतिकाफ करने वाले को बहुत से सवाब देने का वादा किया गया है और एतिकाफ सबसे ज्यादा ख़ास इसलिये भी है की ये एक ऐसी सुन्नत है जिसे हमारे आक़ा हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आखिर तक किया है |
एतिकाफ तीन तरह के होते है : वाजिब एतिकाफ़ , सुन्नते मोअक्किदाह एतिकाफ़ और मुस्तहब एतिकाफ
वाजिब एतिकाफ : इस किस में एतिकाफ में अगर किसी ने कोई मन्नत मांग ली की अगर मेरा वो काम अल्लाह के करम से पूरा हो जायेगा तो मै अल्लाह की रज़ा के लिए तीन दिन , पाँच दिन , या सात दिन का एतिकाफ करूँगा और अगर उस बन्दे का वो काम पूरा हो गया तो उसपे उसकी मन्नत के मुताबिक़ एतिकाफ करना वाजिब होता है
सुन्नते मोअक्किदाह एतिकाफ़ : रमज़ानुल मुबारक के महीने के आखरी अशरे यानी 20 रमज़ान से लेकर ईद का चाँद देखने तक एतिकाफ करना सुन्नते मोअक्किदाह है |
मुस्तहब एतिकाफ : इस किस्म के एतिकाफ के लिए वक्त या मन्नत जैसी चीज़ो की कोई शर्त नहीं आप साल में कभी कभी एतिकाफ कर सकते है |
एतिकाफ के ताल्लुक से आक़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की कई अहदीस भी मौजूद है
हदीस : हज़रत हुसैन रज़िअल्लाहू अन्हु अपने वालिद हज़रते अली रज़िअल्लाहू अन्हु से रिवायत करते है की नाबिये अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया तुम में से जो शख्स रमज़ानुल मुबारक के महीने में 10 दिन का ऐतिकाफ करे उसे दो उमरे और दो हज के बराबर सवाब मिलेगा |
हदीस : सहाबी हज़रत इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहू अन्हु से रिवायत है की हुज़ूर मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया की एतिकाफ करने वाला वो तमाम गुनाह करने से महफूज़ रहता है और उसे इस तरह सवाब मिलता है जैसे वो तमाम नेकियाँ कर रहा हो |
एतिकाफ की शर्ते :
एतिकाफ करने के लिए कुछ शर्ते बतायी गयी है जिसमे सबसे तो ये ज़रूरी है एतिकाफ करने वाला शख्स मुसलमान हो ,
आकिल हो , बालिग़ हो | किसी काफिर और पागल इंसान का एतिकाफ दुरुस्त नहीं |
नोट : कोई नाबालिक बच्चा अगर एतिकाफ करना चाहे तो वो जिस तरह नमाज़ अदा करता है उसी तरह एतिकाफ भी कर सकता है |
एतिकाफ करने का तरीका :
अल्लाह का बन्दा रमज़ानुल मुबारक के आखरी अशरे में अपने तमाम किस्म के दुनियावी काम को तर्क करके सिर्फ और सिर्फ अल्लाह की इबादत के नियत से अल्लाह के घर यानी मस्जिद में रहे | किसी से भी किस तरह की ग़ैर ज़रूरी बात न करे पूरी तवज्जो के साथ अल्लाह के साथ अपना रिश्ता कायम करे | और ये पक्का इरादा भी करे की अगर किसी किस्म की कोई मजबूरी या बहुत ज़रूरी मसाइल पेश नहीं आये तो वो मस्जिद से बहार नहीं निकलेगा |
क्या एतिकाफ सभी मुसलमान को करना ज़रूरी है ?
अभी एतिकाफ की किस्मे आपने पढ़ी जिसमे एक किस्म थी सुन्नते मोअक्किदाह एतिकाफ़ ये रमज़ान महीने के आखरी अशरे की एक ऐसी सुन्नत है जिसे सभी मुसलमान अदा करना चाहिए | लेकिन अगर किसी बस्ती या किसी मोहल्ले की मस्जिद में उस बस्ती या मोहल्ले का कोई एक शख्स भी एतिकाफ कर ले तो मोहल्ले के सभी लोगो के लिए काफी है लेकिन अगर मोहल्ले की मस्जिद में कोई एक शख्स भी एतिकाफ नहीं करता तो पूरी की पूरी बस्ती गुनाहगार होगी |
सुन्नते मोअक्किदाह एतिकाफ़ ज़रूरी क्यों है ?
इसके ज़रूरी होने की तीन वजह है :
- शबे कद्र की तलाश : शबे कद्र एक ऐसी रात जिसका सवाब हज़ार रातों की इबादत से ज्यादा है लेकिन इस रात को अल्लाह ने रमज़ान के आखरी अशरे में छुपा दिया है ये रात रमज़ान की 21 , 23 , 25 , 27 और 29 तारीख की रातो में कोई सी भी रात हो सकती है इस तरह एतिकाफ करने वाला शख्स इस रात की तालाश में पुरे 10 दिन मस्जिद में ही रहता है जिससे उसे इस रात की अज़ीम फजीलत हासिल हो जाए |
- ज़मात का इंतजार होता है : एतिकाफ करने वाले को एक नमाज़ के बाद दूसरी नमाज़ का इंतज़ार होता है और नमाज़ का इंतज़ार करना बड़ी फ़ज़ीलत रखता है ऐसे में ऐतिकाफ करने वाले को इसका भी फायदा हासिल होता है |
- अल्लाह के हुज़ूर पड़े रहना : एतिकाफ करने की तीसरी वजह जो बहुत ख़ास है एतिकाफ करने वाला इंसान खुद को अल्लाह के सामने इस तरह डाल देता है जैसे कोई मिस्कीन , बेसहारा इंसान बादशाह के दरवाज़े पर , एतिकाफ करने वाला ये ज़ाहिर कर रहा होता है की ऐ अल्लाह अब मै तो तेरे दर पे ही पडा हूँ अब तू चाहे तो या मुझे अपने दर से निकाल दे या तू चाहे तो मुझे बख्श दे |
एतिकाफ का फायदा :
जब कोई इंसान अल्लाह की रज़ा के लिए एतिकाफ करता है तो उसका हर पल अल्लाह की इबादतों में शुमार किया जाता है उसका खाना , पीना , सोना , जागना , उठना , बैठना सब के साब इबादतों में शुमार किया जाता है और बन्दा जब तक एतिकाफ में रहता है वो तमाम किस्म के गुनाहों से दूर रहता है दुनियावी फसाद से दूर रहता है जिसका अज्र अल्लाह उसे बेशुमार नेकियां देकर अदा करता है |
एतिकाफ किस जगह किया जाता है ?
मर्दों के लिए : मर्द अगर एतिकाफ करना चाहे तो उसका एतिकाफ सिर्फ मस्जिद में हो सकता है और मस्जिद में में सबसे अफज़ल एतिकाफ मक्का मुकर्रमा के मस्जिदिल हराम में है इसके बाद मस्जिदे नबवी और इसके बाद मस्जिद अल अक्सा में और इसके बाद किसी भी जामा मस्जिद में या अपने मोहल्ले की मस्जिद में वो एतिकाफ कर सकता है जिसमे वो पाँच वक़्त की नमाज़ अदा करता है |
औरत के लिए : औरते भी बेशक एतिकाफ कर सकती है इसके लिए सबसे पहले अगर वो निकाह में है तो अपने शौहर से उसकी इजाज़त हासिल करे उसके बाद अपने घर में कोई एक जगह पक्की करें जहाँ वो नमाज़ अदा करेगी जो जगह वो अपने एतिकाफ के लिए पक्की करेंगी उसे मस्जिदियत कहते है | बस शर्त ये है एतिकाफ के दौरान औरत हैज़ और नेफास से पूरी तरह पाक साफ़ हो |
नोट : अगर शौहर ने एक बार बीवी को एतिकाफ की इजाज़त दे दी है तो वो दुबारा उसे एतिकाफ करने से मना नहीं कर सकता |
क्या एतिकाफ़ करने मस्जिद से बाहर जा सकता है ?
एतिकाफ के लिए सबसे ज़रूरी बात यही की अगर इन्सान मस्जिद में एतिकाफ की नियत है तो एक पल के लिए मस्जिद से उस वक्र नहीं निकल सकता जब तक कोई बहुत ज्यादा ज़रुरत पेश न आये | और अगर वो बेवजह मस्जिद के बाहर चला गया तो उसका एतिकाफ टूट जाता है |
मस्जिद की हद क्या होती है ?
अक्सर लोगो को मस्जिद के हद के बारे उतनी जानकारी नहीं होती है ऐसे में वो समझ नहीं पाते और उनका एतिकाफ टूट जाता है इसलिए बेहतर होगा की आप ये जान लो मस्जिद सिर्फ उतने हिस्से को ही कहते है जितने में नमाज़ अदा की जाती है नमाज़ की जगह के अलावा जितनी भी जगह मस्जिद में होती है जैसे वुज़ुखाना , गुसलखाना , इस्तिनजाखाना इमाम साहब का कमरा और भी वगैरह वगैरह ये सारी जगह मस्जिद के हद से बाहर की जगह है ऐसे में एतिकाफ करने वाला इन जगहों पर बगैर की वजह से नहीं जा सकता और अगर वो बेवजह इन जगहों पर जाता है तो उसका एतिकाफ टूट जायेगा | लिहाज़ा आप इस बात का ख़ास ख़याल रखें
लेकिन एतिकाफ करने वाले को अगर कोई शरई ज़रूरत जैसे किसी वजह से वो नापाक हो गया और गुसल करना उसपे फ़र्ज़ हो गया , पेशाब या पाखाने की हाजत , वुजू करने के लिए , किसी किस्म की खाने पीने की चीज़े लाने लिए अगर कोई और मौजूद न हो तो , किसी बेमार की अयादत के लिए अगर उसकी अयादत कोई और शख्स न हो इन सूरतो में वो मस्जिद की हद से बहार जा सकता है लेकिन ये ज़रुरत पूरी होने के बाद फ़ौरन मस्जिद की हद में वापस लौट आये |
सुन्नते मोअक्किदाह एतिकाफ़ का वक्त कब शुरू होता है और कब ख़त्म होता है ?
जैसा की अभी बताया की सुन्नते मोअक्किदाह एतिकाफ़ रमज़ान के आखरी अशरे में किया जाता है यानी बीसवें रोज़े के दिन मगरिब की नमाज़ के फ़ौरन बाद तीसरा अशरा शुरू हो जाता है ऐसे में एतिकाफ करने वाला मगरिब नमाज़ के तुरंत बाद एतिकाफ की नियत कर ले |
एतिकाफ करने के लिए रोज़े रखना ज़रूरी है क्योकि बगैर रोज़े के एतिकाफ़ नहीं होता इसे अलावा नमाज़ , तरावीह , सलातुल तस्बीह , कुरआन की तिलावत , नफ्ल नमाज़े और दिनी किताब को पढना , ये सब मस्जिद के हद में रह कर करता रहे जब तक ईद का चाँद न निकल जाए | क्योकि ईद का चाँद निकलने के बाद एतिकाफ़ का वक्त खत्म हो जाता है