पहले चाहत , फिर निगाहों से उतारी जाओगी
आबरू भी जाएगी और तुम भी मारी जाओगी
फरीदी सिद्दीकी मिस्बाही साहब का लिखा ये कलाम हर मुसलमान तक पहुचना हमारा फर्ज़ है क्योकि ये दौर ऐसा चल रहा जहां मुस्लिम लडकियों को ख़ास करके निशाना बनाया जा रहा उनकी इज्ज़तो आबरू को पामाल किया जा रहा | मोहब्बत के नाम पर गैर मुस्लिम लड़के मुस्लिम लडकियों को फसा कर उनकी इज्ज़त से खेलते है | और शादी करके उन्हें दर दर की ठोकरे खाने के लिए छोड़ देते है और इसकी एक नहीं बल्कि कई मिसाले आज मौजूद है | यही सारे हालात को देखते हुए फरीदी साहब ने अपने कलाम के ज़रिये मुआशरे में फैली इस बदतर बुराई का ज़िक्र किया है और नसीहत भी दी है |
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पहले चाहत , फिर निगाहों से उतारी जाओगी
आबरू भी जाएगी और तुम भी मारी जाओगी
तुम फिरोगी दर बदर , रुस्वाई और ज़िल्लत के साथ
बेटियों जब छोड़कर निसबत हमारी जाओगी
ये तो इक साज़िश है, वर्ना तुम नहीं उन को क़बूल
कल वही नफ़रत करेंगे, आज प्यारी जाओगी
जिस घड़ी दिल भर गया , कोठे पे बेचेंगे तुम्हें
दाग़ लेकर होगी वापिस और कुँवारी जाओगी
जिसके दम पर घर से निकली, कल वो जब देगा फ़रेब
सोच लो किस सिम्त फिर तुम पावं भारी जाओगी
इज़्ज़त-ओ-अज़मत गंवा कर मुँह दिखाओगी किसे
करते करते दुनिया से तुम आह-ओ-ज़ारी जाओगी
उतरेगा थोड़े दिनों में ही जवानी का नशा
ज़ुलम की आग़ोश में जब बारी बारी जाओगी
कोई मज़हब दे ना पाएगा तुम्हें ऐसा हिसार
छोड़कर इस्लाम की जब पासदारी जाओगी
है शरीयत ही तुम्हारी पासबाँ ए बेटियों
दामन-ए-इस्लाम में ही तुम सँवारी जाओगी
प्यारी बहनों इफ़्फ़त-ओ-शर्म -ओ-हया अपनाओ तो
देखना फिर नूर-ए-हक़ से तुम निखारी जाओगी
तुमको कुछ शिकवा था , तो अपनों से कर देतीं बयाँ
इतने पर , किया दूसरों की तुम अटारी जाओगी
आह दोज़ख़ को ख़रीदा , तुमने ईमां बेच कर
आह अब रोज़-ए-जज़ा , तुम बन के नारी जाओगी
रोती है चश्म-ए-फ़रीदी , देखकर अंजाम-ए-बद
गर ना संभलोगी तो लेने सिर्फ़ ख्वारी जाओगी