Qaza Namaz ki Niyat ka Tarika / क़ज़ा नमाज़ की नियत करने का तरीका |
Table of Contents:-
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- कज़ा नमाज़ की नियत क्यों जरूरी है?
- कज़ा नमाज़ की नियत कब करनी चाहिए?
- कज़ा नमाज़ की नियत कैसे करनी चाहिए?
- Qaza Namaz ki Niyat ka Tarika
- Fajar ki Qaza Namaz ki Niyat
- Zohar ki Qaza Namaz ki Niyat in hindi
- Asr ki Qaza Namaz ki Niyat hindi mein
- Magrib ki Qaza Namaz ki Niyat ka Tarika
- Isha ki Qaza Namaz ki Niyat hindi mein
- कज़ा नमाज़ की नियत का फायदा
- आखरी अल्फाज़
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कज़ा नमाज़ की नियत क्यों जरूरी है?
कज़ा नमाज़ अदा करते समय नियत करना बहुत ही जरूरी है। क्योंकि नियत के बिना कोई भी इबादत या नेकी का मतलब नहीं होता। नियत का मतलब है कि हम अपने दिल में यह मकसद रखते हैं कि हम यह काम खालिस अल्लाह की रज़ा और खुशनुदी के लिए कर रहे हैं। लिहाज़ा हर कज़ा नमाज़ से पहले नियत करना बहुत जरूरी हैं।
क़ज़ा नमाज़ की नियत करना बहुत ही जरूरी है। क्योंकि अगर हम कज़ा नमाज़ अदा करते हुए इसकी नियत नहीं करते, तो वह नमाज़ नही मानी जाएगी। हमारी नमाज़ क़ुबूल नहीं होगी। इसलिए हमें हर बार जब भी कज़ा नमाज़ अदा करें, तो उसकी नियत जरूर करनी चाहिए।
कज़ा नमाज़ की नियत कब करनी चाहिए?
कज़ा नमाज़ की नियत हमें नमाज़ शुरू करने से पहले करनी चाहिए। यानी जैसे ही हम कज़ा नमाज़ अदा करने के लिए खड़े होते हैं, उसी समय हमें अपने दिल में यह नियत करनी चाहिए कि “मैं यह कज़ा नमाज़ अदा कर रहा/रही हूं।”
कज़ा नमाज़ की नियत कैसे करनी चाहिए?
कज़ा नमाज़ की नियत करते समय हमें अपने दिल में यह भाव होना चाहिए कि हम यह नमाज़ खालिस अल्लाह की रज़ा और खुशनुदी के लिए अदा कर रहे हैं। साथ ही हमें यह भी याद रखना चाहिए कि हमने पहले इस नमाज़ को छोड़ दिया था, इसलिए अब हम उसे अदा कर रहे हैं।
Qaza Namaz ki Niyat ka Tarika:-
कज़ा नमाज़ की नियत करने का सबसे आसान तरीका यह है कि जैसे ही हम नमाज़ शुरू करने के लिए खड़े होते हैं, तो अपने दिल में यह कहें, “मैं यह फज्र/ज़ोहर/असर/मगरिब/ईशा कज़ा नमाज़ अदा कर रहा/रही हूं। वास्ते अल्लाह तआला के मुंह मेरा काबा शरीफ की तरफ अल्लाहु अकबर” इस तरह से हम अपनी नमाज़ की नियत कर लेते हैं और उसे अदा कर सकते हैं। अब हम आपको पांचों वक्त की Qaza Namaz ki Niyat ka Tarika बताएंगे।
5 Wakt ki Qaza Namaz ka Tarika:-
Fajar ki Qaza Namaz ki Niyat:
नियत की मैने फज्र की 2 रकात कज़ा नमाज़ की वास्ते अल्लाह तआला के लिए रुख मेरा काबा शरीफ की तरफ! "अल्लाहु अकबार"
अगर कज़ा उमरी अदा कर रहे हो तो इस तरह नियत करें:
नियत की मैने मेरे जिम्मे फज्र की नमाज़ बाकी है उनमें से सबसे पहली 2 रकात कज़ा नमाज़ की वास्ते अल्लाह तआला के लिए रुख मेरा काबा शरीफ की तरफ! "अल्लाहु अकबार"
Zohar ki Qaza Namaz ki Niyat in hindi:
नियत की मैने ज़ोहर की 4 रकात कज़ा नमाज़ की वास्ते अल्लाह तआला के लिए रुख मेरा काबा शरीफ की तरफ! "अल्लाहु अकबार"
अगर ज़ोहर की कज़ा उमरी अदा कर रहे हो तो इस तरह नियत करें:
नियत की मैने मेरे जिम्मे ज़ोहर की नमाज़ बाकी है उनमें से सबसे पहली 4 रकात कज़ा नमाज़ की वास्ते अल्लाह तआला के लिए रुख मेरा काबा शरीफ की तरफ! "अल्लाहु अकबार"
Asr ki Qaza Namaz ki Niyat hindi mein:
नियत की मैने असर की 4 रकात कज़ा नमाज़ की वास्ते अल्लाह तआला के लिए रुख मेरा काबा शरीफ की तरफ! "अल्लाहु अकबार"
अगर असर की कज़ा उमरी अदा कर रहे हो तो इस तरह नियत करें:
नियत की मैने मेरे जिम्मे ज़ोहर की नमाज़ बाकी है उनमें से सबसे पहली 4 रकात कज़ा नमाज़ की वास्ते अल्लाह तआला के लिए रुख मेरा काबा शरीफ की तरफ! "अल्लाहु अकबार"
Magrib ki Qaza Namaz ki Niyat ka Tarika:
नियत की मैने मगरिब की 3 रकात कज़ा नमाज़ की वास्ते अल्लाह तआला के लिए रुख मेरा काबा शरीफ की तरफ! "अल्लाहु अकबार"
अगर मगरिब की कज़ा उमरी अदा कर रहे हो तो इस तरह नियत करें:
नियत की मैने मेरे जिम्मे ज़ोहर की नमाज़ बाकी है उनमें से सबसे पहली 3 रकात कज़ा नमाज़ की वास्ते अल्लाह तआला के लिए रुख मेरा काबा शरीफ की तरफ! "अल्लाहु अकबार"
Isha ki Qaza Namaz ki Niyat hindi mein:
नियत की मैने ईशा की 4 रकात कज़ा नमाज़ की वास्ते अल्लाह तआला के लिए रुख मेरा काबा शरीफ की तरफ! "अल्लाहु अकबार"
अगर ईशा की कज़ा उमरी अदा कर रहे हो तो इस तरह नियत करें:
नियत की मैने मेरे जिम्मे ईशा की नमाज़ बाकी है उनमें से सबसे पहली 4 रकात कज़ा नमाज़ की वास्ते अल्लाह तआला के लिए रुख मेरा काबा शरीफ की तरफ! "अल्लाहु अकबार"
इसी तरह ईशा की वित्र नमाज़ की नियत भी इसी तरह होगी बस ईशा की 4 रकात फर्ज़ कज़ा नमाज़ की जगह वित्र की 3 रकात नमाज़ कज़ा कहना होगा।
कज़ा नमाज़ की नियत का फायदा:
कज़ा नमाज़ की नियत करने से हमारी नमाज़ क़ुबूल हो जाती है। साथ ही हमें अल्लाह की रज़ा और खुशनुदी भी मिलती है। इससे हमारे गुनाह भी माफ हो जाते हैं और हमारी आखिरत में भी फायदा होता है।
आखरी अल्फाज़:
इस तरह क़ज़ा नमाज़ की नियत करना बहुत ही जरूरी है। हमें हर बार जब भी कज़ा नमाज़ अदा करें, तो उसकी नियत जरूर करनी चाहिए ताकि हमारी नमाज़ मान्य और क़ुबूल हो जाए। और अगर कज़ा उमरी की अदायगी कर रहे हैं तो नमाज़ का हिसाब रखना काफी ज़रूरी हैं।