Salam Karne Ka Sahi Tarika (सलाम करने का सुन्नत तरीक़ा)
सलाम करने का सुन्नत तरीका यह है कि जो आदमी सामने से आ रहा हूं वह बैठे हुए लोगों को सलाम करें और जो सवार हो यानी जो गाड़ी से हो, कार से हो बाइक से हो, घोड़े से हो, वह पैदल या बैठे हुए लोगों को सलाम करेंगा, बहुत से लोगों की भीड़ में से एक ही का सलाम कहना काफी है इसी तरह ग्रुप या भीड़ में बहुत से लोगों में से एक ही आदमी का जवाब देना भी काफी है।
काफिर आदमी को पहले सलाम करना जायज नहीं अगर कोई मुशरिक यानी जो शिर्क करता हो किसी मुसलमान को सलाम कहे तो मुसलमान उसके जवाब में सिर्फ अलाईक कहे उससे ज्यादा कुछ ना कहें और मुसलमान के सलाम के जवाब में वालेकुम अस्सलाम कहे जिस तरह इसने अस्सलामु अलैकुम कहा। जवाब देने में अगर बरकातहू का लफ्ज़ बढ़ा दे तो ज्यादा अच्छा है।
कुरान मजीद ने इरशाद है “और जब तुम्हें किसी तरह सलाम किया जाए तो तुम इससे बेहतर सलाम करो इसी तरह का जवाब दो”(surah Nisa)
अगर कोई मुसलमान दूसरे मुसलमान को सिर्फ “सलाम” करें जिस तरह आमतौर पर गांव में लोग “सलाम साहब” “सलाम भैया” कहते हैं इस तरह से तो उसे जवाब नहीं देना चाहिए बल्कि उसे बता दिया जाए कि खाली सलाम करने सुन्नत नहीं है बल्कि पूरा सलाम करना चाहिए जो सुन्नत तरीका है।
औरतों का एक दूसरों को सलाम करना बेहतर है मगर किसी मर्द का जो इन औरतों को सलाम कहें मकरूह है। अगर औरत का चेहरा खुला हुआ हो इसी पोजीशन में सलाम किया जा सकता है।
सलाम करना लड़कों के हक में बेहतर है इसलिए कि इन्हें सलाम करने पर अमादा करना सलाम की आदत डालने के जैसा है।
जो आदमी मजलिस से उठकर बाहर जाए वह जाते वक्त पूरे मजलिस वालों को सलाम कहकर जाए या कुछ देर के बाद अगर वापस आए तब भी अस्सलामु अलैकुम कहे अगर मजलिस दरवाजे या दीवार के पीछे हो तब भी सलाम कहना चाहिए अगर सामने हो तो दोबारा भी सलाम कहना अच्छा है।
पूरा सलाम कैसे करते हैं?
मुसलमान के सलाम के जवाब में वालेकुम अस्सलाम कहे जिस तरह इसने अस्सलामु अलैकुम कहा। जवाब देने में अगर बरकातहू का लफ्ज़ बढ़ा दे तो ज्यादा अच्छा है।
सलाम करने के फायदे
जो बंदा पहले सलाम करता है उसके अंदर अजीजी और तवज्जो पैदा होती है और अल्लाह ताला अजीजी बन्दों को पसंद करता है
सलाम इस तरह से करे की सलाम की आवाज़ सामने वाले के कानो को आसानी से सुनाई दे सके नहीं तो वह जवाब का हक़दार नहीं होगा उसी तरह जवाब देने वाला भी इसी अंदाज में जवाब दे के सलाम करने वाला सुन सके
जब कोई आपसे सलाम करता है तो अदब और बेहतर ढंग से जवाब दे
अपने रिश्तेदारों दोस्तों छोटे बड़े अनजान मुस्लिमो को सलाम करे
सवार करने वाले और पैदल चलने वालो को भी सलाम करे
अपने मेहरम को सलाम करे
जब घर या मस्जिद में दाखिल होतो सभी को सलाम करे
मुस्लिम और गैर मुस्लिम एक जगह इकटे हो तो मुस्लिम इरादे से मुलमानो को सलाम करो
जब किसी के पास फ़ोन और मैसेज आता है तो सलाम करने के बाद बातचीत करो
कब सलाम करना मना है ?
कुछ ऐसे खास जगह है जहां पर Salam Karna Mana Hai जैसे अगर कोई लोग शतरंज खेल रहे हो,लूडो खेलते हुए जुए में लगे हो, शराब पी रहे हो, या इस तरीके से किसी गुनाह का काम कर रहे हो तो उन लोगों को सलाम करना मना है अगर वह लोग करें तो जवाब दे दिया जाए लेकिन अगर दिल में यह ख्याल आया कि अगर मैं जवाब नहीं दूंगा तो यह लोग अपने आमाल पर शर्मिंदा होंगे और इस गुनाह से बाज आ जाएंगे रुक जाएंगे तो फिर सलाम का जवाब ना दें।
कोई मुसलमान अपने दूसरे मुसलमान भाई से 3 दिन से ज्यादा तक बातचीत और बोलचाल बंद ना करें लेकिन जो अहले बिदत, गुमराह, और गुनहगार हो उनसे हमेशा अलग रहे एक मुसलमान दूसरे मुसलमान को सलाम कहता है तो वह जुदाई या नाराजगी के गुनाह से छुटकारा पा लेता है।
किन लोगो को सलाम करना जायज़ नहीं है
बेईमान लोगो को सलाम न तो करे और न ही उनके सलाम का जवाब दे यदि वह सलाम करता है तो सिर्फ ‘अलैक’ कहे
जिनदीक को सलाम ना करे
जो आदमी सरेआम खुल्लम खुल्ला बुरे काम करता है ऐसे बुरे आदमी को सलाम करना मकरूह है
जवान और अजनबी औरतो को सलाम करना जायज़ नहीं है और ना ही औरतो का जवान और अनजान से सलाम करना वाजिब है हा यदि औरत बूढ़ी है और बुजुर्ग है तो सलाम जायज है
बिदअती को सलाम करना जायज नहीं है
कब सलाम ना करे
नमाज पढ़ने वालो को
दिनी बातो को बयान जारी करते वक़्त
अज़ान देने वालो को
इक़ामत की अज़ान देने वालो को
खुत्बा देने वालो को
खाना खाने वालो को
पेशाब और पैखाना करने वालो को
बीवी से हमबिस्तरी करते वक़्त
जिक्र करने वालो को
जिस आदमी का सतर खुला हुआ हो
नोट: कुछ हालातो में सलाम का जवाब देना वाज़िब नहीं लेकिन कुछ हालातो में काम को रोककर सलाम का जवाब दे सकता है और कुछ हालातो में सलाम का जवाब देना बिलकुल जायज नहीं है।
रास्ते पर क्यों नहीं बैठना चाहिए ?
रसूल अल्लाह सल्लाह अलेहे व सल्लम ने फ़रमाया के रास्तो में बैठने से बचो तो लोगो ने अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह हम रास्ते में बैठते है और आपस में मिलकर बात चित करते है तो रसूल अल्लाह फरमाए के तुम नहीं मानते और बैठना ही चाहते हो तो रास्ते का हक़ अदा करो। लोगो ने अर्ज़ किया रास्ते का क्या हक़ है. फ़रमाया की
नज़र नीची रखना
सलाम का जवाब देना
अच्छी बात का हुक्म करना और बड़ी बात से मना करना
और एक रवायत में है के रास्ता बताना और एक रवायत में है के फरयाद करने वालो को फरयाद सुनना
रास्ता भूले हुए को रास्ता बताना.