जब दुल्हा, दुल्हन कमरे में जाए और तन्हाई हो तो बेहतर यह है कि सबसे पहले दोनो वुज़ू कर ले! और फिर जानमाज़ या कोई पाक़ कपड़ा बिछा कर दो (2) रकाअ़त नफ्ल, शुक्राना पढ़ें । अगर दुल्हन हैज़ (माहवारी) की हालत में हो तो नमाज़ न पढ़ें। लेकिन दुल्हा ज़रूर पढ़ें।
हदीस :- हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रदिअल्लाहु तआला अन्हु फरमाते है।……
एक शख्स ने उनसे बयान किया कि मै ने एक जवान लड़की से निकाह कर लिया है और मुझे अंदेशा (डर) है के वह मुझे पसंद नही करेगी। हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदि अल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया । “मुहब्बत व उल्फत अल्लाह की तरफ से होती है और नफरत शैतान की तरफ से, जब तुम बीवी के पास जाओ तो सब से पहले उस से कहो कि वह तुम्हारे पीछे दो (2) रकाअ़त नमाज़ पढ़े ! इंशा अल्लाह तुम उसे मुहब्बत करने वाली और वफा करने वाली पीओंगे।
( गुनीयातुत्तालिबीन, बाब नं 5, सफा नं 115)
नमाज़ की नियत :- नियत की मै ने दो रकाअ़त नमाज़ नफील शुक्राने की वास्ते अल्लाह तआला के मुँह मेरा काबा शरीफ के अल्लाहु अक़बर ।
? Namaz Ka Tarika
फिर जिस तरह दूसरी नमाज़े पढ़ी जाती है उसी तरह येह नमाज़ भी पढ़ें। (यानी सुरीह फातीहा, फिर उस के बाद कोई एक सूराह मिलाए) नमाज़ के बाद इस तरह दुआ करें…
ऐ अल्लाह तेरा शुक्र व एहसान है के तू ने हमें यह दिन दिखाया, और हमें इस खुशी व नेमत से नवाज़ा और हमे अपने प्यारे हबीब ﷺ की इस सुन्नत पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फरमाई! ऐ अल्लाह मुझे इससे और इसको मुझसे रोजी अता फरमा! और हमपर अपनी रहमत हमेशा कायम रख, और हमे ईमान के साथ सलामत रख! आमीन”
( गुन्यतुत्तालिबीन, बाब नं 5, सफा नं 115)
सुहाग रात की ख़ास दुआ
नमाज़ और दुआ के बाद दुल्हा, दुल्हन सुकून व इत्मीनान से बैठ जाए फिर उसके बाद दुल्हा अपनी दुल्हन के पेशानी थोड़े से बाल अपने सीधे हाथ मे नर्मी के साथ मुहब्बत भरे अंदाज़ में पकड़े और येह दुआ पढ़े
सुहाग रात की ख़ास दुआ अरबी में
اللَّهُمَّ إِنِّي أَسَْلُكَ مِنْ خَيْرِهَا ، وَخَيْرِ مَا جُبِلَتهاْ عَلَيْهِ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّهَا وَشَرِّ مَا جُبِلَتهاْ عَلَيْهِ “
सुहाग रात की ख़ास दुआ हिन्दी में
” अल्लाहुम्मा इन्नी अस’अलुका खैराहा व खैरा मा जबलतहा अलैहि व आउज़ुबिका मिन शररी मा जबलतहा अलैहि
“सुहाग रात की ख़ास दुआ का तर्जुमा
तर्जुमा :- ऐ अल्लाह मैं तुझ से इस की (बीवी ) भलाई और खैर व बरकत माँगता हूँ! और उस की फितरी आदतों की भलाई और तेरी पनाह चाहता हूँ उसकी बुराई और फ़ितरी आदतों की बुराई से “
हदीस :- हज़रत अ़म्र बिन आ़स [रदिअल्लाहो तआला अन्हो] से रिवायत है। कि हुजुर ﷺ ने इरशाद फरमाया…..
“जब कोई शख्स निकाह करे और पहली रात (सुहाग रात) को अपनी दुल्हन के पास जाए तो नर्मी के साथ उस के पेशानी के थोड़े सेे बाल अपने सीधे हाथ में ले कर यह दुआ पढ़ें। (वही दुआ जो ऊपर नक़्ल की गयी हैं!)
( अबूूदाऊद शरीफ, जिल्द नं 2, सफा नं 150, व हिस्ने हसीन, सफा नं 164 )
फ़ज़ीलत :- शबे जुफाफ (सुहाग रात) के रोज़ इस दुआ को पढ़ने की फ़ज़ीलत में उलमा-ए-किराम इरशाद फरमाते है। के….. “अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इस के पढ़ने की बरक़त से मियाँ, बीवी के दर्मियान इत्तेहाद व इत्तेफ़ाक़ और मुहब्बत क़ायम रखेगा! और अगर औरत में बुराई हो तो उसे दूर फ़रमा कर उस के जरिए नेकी फैलाएगा और औरत हमेशा मर्द की ख़िदमत गुजार, वफ़ादार, और फरमांबरदार रहेगी। (इन्शा अल्लाह)
अगर हम इस दुआ मानो (Meaning) पर गौ़र करें तो हम पाएंगे के इसमे हमारे लिये कितने अमन व सुकून का पैग़ाम है। यह दुआ हमे दर्स देती है की किसी भी वक्त इंसान को यादे इलाही से गाफील नही होना चाहीये बल्की हर वक्त हर मुआमले मे अल्लाह की रहमत का तलबगार रहे! लिहाजा इस दुआ को शादी की पहली (सुहागरात) को ज़रूर पढ़े!
इंजाल के वक्त की दुआ
जिस वक्त इंजाल हो यानी मर्द की मनी उसके आले निकल कर औरत की फ़र्ज़ में दाखिल होने लगे उस वक्त दिल ही दिल में ये दुआ पढ़ें।
इंजाल के वक्त की दुआ अरबी में
اللَّهُمَّ لَا تَجْعَلْ لِلشَّيْطَانِ فِيمَا رَزَقْتَنِي نَصِيبَاً
इंजाल के वक्त की दुआ हिन्दी में
“अल्लाहुम्मा ला तज’अल लिश शैताना फि मा रज़ाक़तनी नसीबा “
इंजाल के वक्त की दुआ का तर्जुमा
तर्जुमा :- ऐ अल्लाह! शैतान के लिए हिस्सा न बना उसमें जो (औलाद) तू हमें अता करे “
( हिस्ने हसीन सफ़हा-165 +फतावा रिज़विया जिल्द-9 निस्फे आख़िर सफ्हा-161 )
इस दुआ की तालीम देना इस बात की शहादत है कि इस्लाम एक मुकम्मल दीन है जो जिन्दगी के हर मोड़ पर अपना हुक्म नाफ़िज़ करता है ताकि मुसलमान किसी भी मुआमले में किसी दूसरे धर्म व कानून का मुहताज न रहे और इस दुआ में दूसरी हिक्मत ये भी है कि मुसलमान किसी भी हाल में यादे इलाही से गाफिल न रहे बल्कि हर हाल में अल्लाह की रहमत का उम्मीदवार रहे।
साथ ही ये बात भी याद रखना जरूरी है कि आने वाली औलाद के लिए अल्लाह तआला की बारगाह में दुआ तो की जाए कि अल्लाह उसे शैतान से महफूज रखे लेकिन जब औलाद पैदा हो जाए और उसे शैतानी कामों से न रोके उसे बुरी बातों से मना न करे और अच्छी बातों का हुक्म न दे तो बड़ी अजीब व तअज्जुब खेज बात होगी। इसलिए आगाह हो जाइए कि ये दुआ हमें आइंदा के लिए भी अमले खैर करने की दावते फिक्र देती है। इंजाल के फौरन बाद अलग न हो हदीसः हजरत सय्यदना इमाम मुहम्मद गजाली रदिअल्लाहो तआला अन्हो रिवायत करते हैं कि हुजूर अकरम ﷺ ने इरशाद फ़रमायाः ‘मर्द में ये कमजोरी की निशानी है कि जब मुबाशरत का इरादा करे तो वोसी किनार से पहले जिमाअ करने लगे और जब इंजाल हो जाए तो सब्र न करे और फौरन अलग हो जाए कि औरत की हाजत पूरी नहीं होती।”
( कीमियाए सआदत सफ्हा-266 )
इमामे अहले सुन्नत आला हजरत इमाम अहमद रजा ख़ाँ फाजिल बरेलवी रदिअल्लाहो तआला अन्हो फ़रमाते हैं: “इंजाल होने के बाद फौरन औरत से जुदा न हो यहाँ तक कि औरत की भी हाजत पूरी हो। हदीस पाक में इसका भी हुक्म है। अल्लाह अजवजल कीबेशुमार रहमतें उस नबीए रहमत ﷺ पर जिन्होंने हम को हर बाब में तालीमे खैर दी और हमारी दुनियावी व दीनी हाजतों की कश्ती को किसी दूसरे के सहारे न छोड़ा।
( फतावा रिज़विया जिल्द-9 निस्फ आख़िर सफ्हा-161 )
चुनाँचे मर्द को इंजाल हो भी जाए तो फ़ौरन औरत से अलग न हो जाए बल्कि उसी तरह कुछ देर और ठहरा रहे ताकि औरत का भी मतलब पूरा हो जाए क्योंकि औरत को देर में इंजाल होता है।
मुवाशरत के बाद अजूए मरवसूस की सफाई
सोहबत के बाद मर्द और औरत अलग हो जाएं। फिर किसी साफ कपड़े से पहले दोनों अपने अपने मकामे मखसूस को साफ करें ताकि बिस्तर पर गंदगी न लगने पाए। सफाई के बाद पेशाब कर लें कि उसके बहुत से फाएदे अतिब्बा ने बयान किए हैं। जिनमें से चंद यहाँ जिक्र किए जाते हैं।
(1) अगर मर्द के आले में कुछ मनी बाकी रह गई हो तो पेशाब के जरीए निकल जाती है। क्योंकि अगर थोड़ी सी मनी अज्ब में ऊपर रह जाए तो बाद में पेशाब में जलन और खुजली की बीमारी होने का अंदेशा होता है।
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(2) पेशाब जरासीम कश होता है (क्यों कि पेशाब में जरासीम को ख़त्म करने वाले अज्जा पाए जाते हैं। इसलिए पेशाब के वहाँ से गुज़रने से उस जगह की सारी गंदगी ख़त्म हो जाती है और उस जगह के जरासीम खत्म हो जाते हैं और शर्मगाह की नाली साफ हो जाती है। इस तरह के और भी कई फाएदे हैं जिनकी मफसील यहाँ तिवालत का सबब है।
नोट:- पेशाब के उज्वे तनासुल से जुदा होने के बाद और ठंडे होने पर खुद पेशाब के करोड़ो जरासीम बढ़ कर नुक्सान देह साबित होते हैं। इसलिए इस्लामी शरीअत में पेशाब का किसी तरह का भी इस्तेमाल हराम है।
पेशाब कर लेने के बाद शर्मगाह और उसके अतराफ के हिस्से को अच्छी तरह से धो लें। उससे बदन तंदरुस्त रहता है और खुजली की बीमारी से बचाव हो जाता है।
लेकिन याद रखीए! मुबाशारत के फौरन बाद जिस्म का दर्जयहरारत (Body Tempreture) बढ़ जाता है और जिस्म में गर्मी आ जाती है। अगर गर्म जिस्म पर ठंडा पानी डाला जाएगा तो बुखार होने का ख़तरा है। लिहाजा सोहबत करने के बाद तकरीबन पाँच, दस मिन्ट बैठ जाए या लेट जाए ताकि बदन की हरारत एतेदाल पर आ जाए। फिर उसके बाद पानी का इस्तेमाल करे। अगर जल्दी हो तो हल्के गर्म, गुनगुने पानी से शर्मगाह धोने में कोई नुक्सान नहीं।
मुवाशरत के चंद मजीद आदान जैसा कि हम पहले बयान कर चुके हैं कि मजहबे इस्लाम हमारी हर जगह हर हाल में रहनुमाई करता हुआ नज़र आता है। यहाँ तक कि मियाँ बीवी के आपसी तअल्लुकात में भी एक बेहतरीन दोस्त व रहनुमा बन कर उभरता है और हमारी भरपूर रहनुमाई करता है।
मसला:- जहाँ कुरआन करीम की कोई आयत करीमा किसी चीज़ पर लिखी हुई हो। अगरचे ऊपर शीशा (काँच) हो। जब तक उस पर कपडे का गिलाफ न डाल ले वहाँ सोहबत करना या बरहना होना बे अदबी है।
( फतावा रिज़विया जिल्द-9 निस्फ़ आख़िर सफ्हा-257 )