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आक़ा ! ले लो सलाम अब हमारा
सबा ! तू मदीने जा के कहना ख़ुदारा !
ग़म से हैं टूटे हुए, इस्याँ में डूबे हुए
कर दो करम या नबी ! हैं हाथ फैले हुए
रोज़-ए-महशर उम्मती का आप ही सहारा
आक़ा ! ले लो सलाम अब हमारा
सबा ! तू मदीने जा के कहना ख़ुदारा !
चाँद के टुकड़े हुए, पेड़ों ने सज्दे किए
सूरज पलट आ गया, ये मो'जिज़े आप के
सारी दुनिया पर है आक़ा ! क़ब्ज़ा तुम्हारा
आक़ा ! ले लो सलाम अब हमारा
सबा ! तू मदीने जा के कहना ख़ुदारा !
नूर-ए-ख़ुदा आप हैं, शाह-ए-हुदा आप हैं
ए सरवर-ए-अम्बिया ! बहर-ए-सख़ा आप हैं
है ये अज़मत रब ने तुम पर क़ुरआं उतारा
आक़ा ! ले लो सलाम अब हमारा
सबा ! तू मदीने जा के कहना ख़ुदारा !
दिन-रात रोती है ये उम्मत तुम्हारे लिए
हो जाए नज़र-ए-करम आक़ा ! हमारे लिए
तयबा की गलियोँ का हम को हो अब नज़ारा
आक़ा ! ले लो सलाम अब हमारा
सबा ! तू मदीने जा के कहना ख़ुदारा !
नातख्वां:
क़ारी रिज़वान खान