History Of Islam In Hindi
मज़हबे इस्लाम किसी भी मुल्क के लिए कोई नया मज़हब नही है! मज़हबे इस्लाम के बारे में मुसलमानों और ग़ैर मुसलमानों की एक अज़ीम जमाअत यानी अक्सर लोग इस गलत फ़हमी के शिकार हैं के मज़हबे इस्लाम के बारे में ये ख़्याल किया जाता है के इस मज़हब कि शुरूआत हज़रत मोहम्मद सल्लाहो अलैहे वस्लम से हुई है! जब के आप के जरिए इस दिन की यानी मज़हबे इस्लाम की तकमील हुई है! आप सल्लाहो अलैहे वस्लम सिलसिला–ए–नबूवत के आख़री पैगम्बर हैं! आप के बाद अब कोई पैगम्बर नही आएगा!
Duniya Me Islam Ki Shuruat Kaise Hui
मज़हबे इस्लाम की शुरुआत तो हज़रते आदम अलैही सलाम से हुई जो तौरेत, ज़बूर, इंजील और क़ुरआन मजीद और तमाम आसमानी किताबों की रु से ज़मीन पर पहले इंसान और पहले पैग़म्बर थे हक़ीक़त में इस्लाम मज़हब अल्लाह ताला का दिन है जिसकी हिदायत उस ने शुरू ही से की है और आख़री में मोहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम पर उतार कर के सारी दुनिया को बग़ैर किसी फ़र्क़ मज़हब व मिल्लत, रंग व नस्ल, ज़बान व इलाक़ा, ज़मान व मकान क़बूल करने की दावत दी! इस लेहाज़ से मज़हबे इस्लाम कोई नया दिन नही है बल्के ये इंसानियत का अज़ली व अब्दी दिन है! ये तमाम इंसानियत की मुश्तरका मीरास है! ये सिर्फ़ मुसलमानों का दिन नही बल्के दिने कायनात है!
Islam Dharm Kya Hai
अल्लाह ताला क़ुरआन मजीद में इरशाद फरमाया के इस्लाम पूरी कायनात का दिन है इस्लाम पूरी इंसानियत का दिन है तो ऐ इंसानों! तो अपने रब की पूजा करो जिसने तुम्हे और तुम से पहले के लोगों को पैदा किया! उम्मीद है के तुम इस तरह दुनिया और आख़ेरत में नाकामियों से बच सकोगे! वही अल्लाह जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन का बिछौना बनाया और आसमान की छत बनाई और आसमान से पानी बरसाया और उस पानी से तुम्हारे लिए फलों का रिज़्क़ पैदा किया तो तुम ख़ुदा की पूजा में किसी को शरीक न ठहराव!
अल्लाह ताला के नज़दीक दीन सिर्फ मज़हबे इस्लाम है के दुनिया की कामियाबी और नुकसान अब सिर्फ और सिर्फ दीने इस्लाम से वाबिस्ता है तो जो इस्लाम धर्म को मानेगा वही कामियाब होगा और जो न मानेगा वो एक फर्द हो या समाज ख़ुद घाटे में रहेगा!
Mazhab E Islam Kis Chige Ka Margdarshak Hai
अब आये एक नज़र इस बात पर भी डाला जाए कि इस्लाम किस चीज़ का मार्गदर्शक है?
1.मज़हबे इस्लाम ने जिस चीज़ पर सब से ज़्यादा ज़ोर दिया है वो एक ख़ुदा को मानने का तसव्वुर है यानी इस काएनात का एक ही पैदा करने वाला एक ही मालिक और एक ही हुक्म चलाने वाला है! उस के सिफ़ात और इख़्तियारत में कोई किसी तरह से भी शरीक नहीं है! मज़हबे इस्लाम ख़ुदा के इलावाह किसी इंसान, फरिश्ता, देवी देवता, पत्थर और पहाड़ को पूजा करने का मुस्तहिक़ नहीं समझता! इस्लामी तालीमात के रु से बन्दगी और अताअत ख़ालिस अल्लाह के लिए होनी चाहिए!
2.मज़हबे इस्लाम ने एक ख़ुदा को मानने के बाद जिस चीज़ पर ज़ोर दिया है वो वहदते आदम है! यानी तमाम इंसान एक ही माँ बाप की औलाद हैं चाहे वो हिन्दू हों या सिख, ईसाई हो या मुसलमान, चीनी हो या जापानी, बरहमण हो या शूद्र, काले हो या गोरे, अंग्रेजी बोलते हों या अरबी, दौलत मंद हो या ग़रीब, किसी भी धर्म के मानने वाले हों या फिर किसी भी जगह के रहने वाले हों और उनकी कोई भी जिन्स या नस्ल हो सब के सब एक ही माँ बाप के औलाद हैं!
क़ौमों और क़बीलों का बटवारा सिर्फ पहचान के लिए है बेरादरी और खानदान किसी ऊँच नीच को बढ़ावा नही देता बल्के मज़हबे इस्लाम इस को मिटा देना चाहता है! मज़हबे इस्लाम के नज़दीक सारे इंसान बराबर हैं और हर इंसान अपने हुक़ूक़ और इख़्तियार का मालिक है, कोई आदमी दौलत और हसब व नसब के ज़ोर से किसी कमज़ोर इंसान को दबा नहीं सकता, कोई इंसान पैदाईशी तौर पर ज़लील और पैदाईशी तौर पर मोअज़्ज़ नहीं होता, तमाम इंसान पैदाईशी तौर पर मोअज़्ज़ और बराबर हुक़ूक़ और एहतराम के मुस्तहिक़ हैं! अगर कोई इंसान किसी इंसान को गिरी हुई नज़र से देखे तो ये काम ख़ुदा के नज़दीक बहुत ही बुरा है और ये चीज़ उस इंसान को ख़ुदा के नज़र में गिरा देती है!
इस्लाम ने शरफ़ और इम्तियाज़ का सिर्फ एक ही पहलू माना है और वो ये है के कौन ख़ुदा से कितना डरने वाला है जो ख़ुदा से जितना डरने वाला है ज़ाहिर है वो ख़ुदा के हुक्म का उतना ही पाबंद होगा! इंसान और इंसान में कोई फ़र्क़ नहीं करेगा, तमाम लोगों के हक़ इंसाफ़ के साथ अदा करेगा! और इंसानियत की मदद करना अपनी ज़िंदगी का पहला काम समझेगा! ज़ाहिर सी बात है ऐसा आदमी ख़ल्क़ और ख़ुदा दोनो के नज़दीक क़ाबिले इज़्ज़त माना जाएगा! इस तरह मज़हबे इस्लाम इंसानी शरफ़ और बराबरी का मार्गदर्शक है! अमुमि और अवामी क़दरों का पास रखने वाला है जो सच्ची आज़ादी और लोकतंत्र की रूह है!
3.मज़हबे इस्लाम का तीसरा बुनियादी ख़ूबी वहदते दीन है! इस्लाम की रु से दीने हक़ बहुत से नहीं हैं बल्के दीन हमेशा से एक ही रहा है! जब ख़ुदा एक है, और इंसान एक है, तो इंसानों की हिदायत और रहनुमाई के लिए ज़िन्दगी गुज़ारने के उसूल भी एक होना चाहिए!
Ek Insan Ko Musalman Hone Ke Liye Kya Zaruri Hai
एक इंसान को मुसलमान होने के लिए ज़रूरी है के जिस तरह वो मोहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम पर ईमान लाया और उनकी इज़्ज़त करता है ठीक इसी तरह दूसरे पैगम्बर जैसे हज़रते ईसा, हज़रते मूसा, हज़रते इब्राहिम और हज़रते नूह पर ईमान लाए! अगर कोई इंसान इन पर ईमान नही लाता या फिर इन में से किसी एक पर भी ईमान नही लाता तो वो मुसलमान नही है!
जब के आज के इस दौर में ये बात ग़लत तरीके से अपना ली गई है के हज़रते ईसा ईसाई मज़हब के बानी हैं और हज़रते मूसा यहूदी मज़हब के बानी हैं! सच्ची बात यह है के इन मे से कोई भी किसी मज़हब के बानी नहीं हैं! बल्के ये सभी पैग़म्बरों ने सिर्फ़ एक धर्म अल्लाह की पूजा की दावत दी थी जिसे इस्लाम कहा जाता है!
Islam Dharm Ki Visheshtayen
हिन्दुस्तान में हिन्दू धर्म के बहुत से लोग वेदों को ईश्वर के जानिब से आया हुआ किताब मानते हैं! वेदों में ख़ुदा एक है और धर्म एक है का तसव्वुर जगह जगह मिलता है ये सब बातें इस हक़ीक़त के तरफ़ इशारा करते हैं के इन सब तरीक़ों को छोड़ कर पैग़म्बरों के बताए हुए तरीके के मुताबिक़ ज़िन्दगी के सभी मामले में एक ख़ुदा की पूजा करनी चाहिए! अगर ऐसा हो जाए तो फिर धर्म धर्म का झगड़ा मिट जाए और पूरी इंसानियत एक सीधे सच्चे रास्ते पर चलने लगेंगे
आज हिन्दुस्तान के मुख़्तलिफ़ जगहों पर लोग इस्लाम धर्म से अपना रिश्ता जोड़ रहे हैं तो उनका ये इस्लाम धर्म क़बूल करना हक़ीक़त में धर्म बदलना नही है बल्के धर्म क़बूल करना है! ये धर्म आंत्रण (Change Of Faith) नही है बल्के धर्म धारण (Acceptance Of Faith) है क्यूँ के हिन्दू धर्म के बड़े बड़े गुरुवों ने ये बात कही है के हिन्दू धर्म धर्म नही है बल्के ये एक कलचर है और कलचर धर्म का एक हिस्सा होता है जिसका खुलासा ख़ास तौर पर सामाजिक कामों के शक्ल में होता है न के ज़िन्दगी का कोई अक़ीदाह फ़राहम करता है यही कारण है के आज कल हिन्दू धर्म को हिन्दुस्तानी कौमियत से जोड़ने की कोशिश की जा रही है और मादरे वतन को ख़ुदाई के मक़ाम पर बैठाने का इंतेज़ाम किया जा रहा है!
जब के धर्म और कौमियत दो अलग अलग चीजें हैं! अक़ीदह बदलने से कौमियत नही बदलती! एक शख्स अग़र हिन्दू हो कर हिन्दुस्तानी था तो वो मुसलमान हो कर भी हिन्दुस्तानी ही रहे गा, अगर वो हिन्दुस्तान को अपना वतन मानता है या फिर उसने हिन्दुस्तान में जन्म लिया है ये एक धोखा है जो कुछ कट्टर विरोधी की तरफ़ से दिया जा रहा है के धर्म बदलने से कौमियत बदल जाती है! अक़ीदह अलग चीज़ है और मुल्क अलग चीज़ है! अक़ीदह बदलने से मुल्क नहीं बदलता बल्के दोनो अपनी अपनी जगह क़ायम हैं!
Mazhab E Islam Or Hindu Dharm
4.मज़हबे इस्लाम का चौथा बुनियादी ख़ूबी आख़ेरत का तसव्वुर है ईसाई अक़ीदे के मुताबिक़ हज़रते ईसा ने जो नाउज़ बिल्लाह ख़ुदा के बेटे थे इंसानियत को गुनाहे अज़ली से छुटकारा दिलाने के लिए ख़ुद की कुर्बानी दे कर हर उस शख्स को स्वर्ग और निजात की ज़मानत दे दी जो ईसाईयत को धर्म के तौर पर क़बूल कर लेता है! चाहे उसके कर्म जैसे भी क्यूँ न हों!
दूसरी जानिब आवा गोन का मानना ये बताता है के इंसान की ज़िन्दगी का महत्वपूर्ण मक़सद कुछ निजात का हासिल होना है जिस के माना बार बार के जन्म से बच जाना है और ईश्वर की आत्मा में विलेन हो जाता है! इस अक़ीदेह कि रू से इंसान अपने कर्म का फल भोगने के लिए बार बार दुनिया मे जन्म लेता है! अच्छा काम करने से अच्छे कल में जन्म लेता है और बुरा काम करने से बुरे कल में जन्म होता है ये अक़ीदह इस बात को मानता है के शुद्र में जन्म बुरे कर्म करने से होता है और इंसान पर जो मुसीबतें आती हैं या वो जब बीमार हो जाता है तो वो उस के पिछले जन्म के कर्म की सज़ा है नीज़ इंसान अपने कर्म के वजह से पेड़ पौधे कीड़े मकोड़े और कुत्ते बिल्ली में जन्म ले सकता है!
ये अक़ीदह इतना कमज़ोर है के इस पर किसी भी अमली गुफ़्तुगू की ज़रूरत नही है! ताअज्जुब इस बात पे होता है कि बहुत से समझदार लोग भी क्यूँ इस अक़ीदे के क़ाइल हैं यानी मानते हैं! शायद बाप दादा के ख़्याल की पासदारी और पूर्वजों को अपमानित न करने का एहसास इन को लगा रहता हो या फिर आख़ेरत का अक़ीदह न मान कर वो अपने आप को इन जिम्दारियों और जवाब देहियों से बचाना चाहते हैं जिसे ये अक़ीदह एक आदमी पर लागू करता है!
मज़हबे इस्लाम का आख़ेरत का तसव्वुर एक बहुत ही अच्छा और समझ के क़ाबिल अक़ीदह है इस अक़ीदे की रु से हर इंसान एक जिम्मेदार वजूद है लेहाज़ा उसे अपनी ज़िन्दगी को पूरी जिम्मेदारी के साथ गुज़ारनी चाहिए इस लिए के उसके एक एक कर्म का हिसाब किताब होगा! इंसान इस संसार में एक बे लग़ाम जानवर नही है बल्के उसे एक न एक दिन मरना है और मर कर अपने ईश्वर के पास जाना है, वो उससे पूछेगा के दुनिया मे कैसी ज़िन्दगी गुज़ार कर आए हो? अगर उसने साफ़ सुतरह, इंसाफ़ पसन्द ज़िन्दगी गुज़ारी होगी तो ख़ुदा के यहाँ कामियाब होगा और उसकी नेमत भरी स्वर्ग का हक़दार होगा जहाँ वो हमेशा रहेगा! और अगर उसने ज़ुल्म व ज़ोर वाली ज़िन्दगी गुज़ारी होगी और ख़ुदा की ज़मीन में कुफ़्र और शिर्क को फ़रोग़ दिया होगा, ख़ल्क़ और ख़ुदा के हक़ को नही पहचाना होगा तो वो फिर नाकाम होगा और ख़ुदा के अज़ाब यानी जहन्नम का हक़दार होगा जहाँ वो हमेशा रहेगा!
ये अक़ीदह हर इंसान को उसके कर्म का ख़ुद ज़िम्मेदार क़रार देता है और उसके अंदर ज़िम्मेदारी वाली ज़िन्दगी गुज़ारने का उसूल सीखा देता है! जो समाज इस अक़ीदेह पर जितना मज़बूती के साथ क़ायम होगा उस मे हुक़ूक़ की पासदारी, इंसानी एहतराम, इंसाफ परवरी और हक़ पसंदी उसके अंदर उतना ही ज़्यादह होगा! ये अक़ीदह इस संसार में बसने वाले सभी इंसानियत के लिए भलाई और बेहतरी का ज़ामिन है! ये अक़ीदह जितना कमज़ोर होगा उतना ही ज़्यादह बुराई और फ़साद फैलेगा तो ये अक़ीदह भारतीय समाज की इस्लाह यानी सुधार लाने के लिए निजात का रास्ता है!
मज़हबे इस्लाम से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य:
इस्लाम धर्म के आख़री पैगम्बर मोहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम हैं!
पैगम्बर मोहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम के वालिद का नाम अब्दुल्लाह था!
हज़रत मोहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम अरब के क़ुरैश खानदान से थे!
हज़रत मोहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम का जन्म 20 अप्रैल 571 ई० को हुआ था!
हज़रत मोहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम के माँ का नाम आमना है!
हज़रत मोहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम से पहले अरब में बूत परस्ती थी!
हज़रत मोहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम को पहला ज्ञान मक्का के क़रीब गारे हीरा नाम के गुफ़ा में प्राप्त हुआ!
हज़रत मोहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम के तीन बेटे और चार बेटियाँ थीं!
हज़रत मोहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने पहली शादी 25 साल के उम्र में हज़रते ख़दीजा से की थी!
हज़रत मोहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम के दामाद का नाम हज़रते अली था!
हज़रत मोहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने अल्लाह के घर मक्का का एक बार हज और चार बार उमराह किया था!
क़ुरआन मज़हबे इस्लाम का पवित्र ग्रंथ है!
हज़रत मोहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने क़ुरआन के तालीम का उपदेश दिया!
हज़रत मोहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम का इंतेक़ाल 8 जून 632 ई० को हुई और मदीना में दफ़न किया गया!
हज़रत मोहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम के जन्म दिन को ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के नाम से मनाया जाता है!
हज़रत मोहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम के पास जिब्रील नाम के फ़रिश्ता क़ुरआन ले कर आया करते थे!
पैगम्बर मोहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने अपनी पूरी ज़िंदगी मे कुल ग्यारह शादियाँ की थीं!
हज़रत मोहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने एक ख़ुदा के पूजा का शिक्षा दिया!
हज़रत मोहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने कुल 63 साल की उम्र पाई!
हज़रत मोहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम के फरमान को हदीस कहा जाता है!