Manzil mile Us Raah ki pahechaan Ishq hai
Aanhon mein Hasraton ki Jagaah par Ummid ho
Ho Jis se bhalaa Sabka kuchh Aesi Nawid ho
Jinke liye taraste rahe Unki deed ho
Insaaniyat pe Jiska ho Imaan Ishq hai
Sabke liye Paigaam hai Ramzaan Ishq hai
Rabb ki riza pe Jaan bhi qurbaan Ishq hai
Har simt Uski ne-matein Uska kamaal hai
Patta bhi hil na paye kya Iski majaal hai
Qudrat ko Teri dekh kar hairaan Ishq hai
Rehmat ho Magfirat ho ya ho Aag se nijaat
Dena Usika kaam hai Uski hai ye sifaat
Bande ka kaam hai Fakat maane Usi ki Baat
Bas Uspe tawakkal hai to Imaan Ishq hai
Sabke liye Paigaam hai Ramzaan Ishq hai
Rabb ki rizaa pe Jaan bhi qurbaan Ishq hai
करदे जो अक़्लो होश से अंजान इश्क़ है
मंज़िल मिले उस राह की पहचान इश्क़ हैआँखों में हसरतों की जगह पर उम्मीद हो
हो जिस से भला सबका कुछ ऐसी नवीद हो
जिनके लिए तरसते रहे उनकी दीद हो
इंसानियत पे हो जिसका हो ईमान इश्क़ है
सबके लिए पैगाम है रमजान इश्क़ है
रब्ब की रिज़ा पे जान भी क़ुर्बान इश्क़ है
हर सिम्त उसकी नेमतें उसका कमाल है
पत्ता भी हिल न पाए क्या इसकी मजाल है
क़ुदरत को तेरी देख कर हैरान इश्क़ है
रेहमत हो मगफिरत हो या हो आग से निजात
देना उसी का काम है उसकी हैं ये सिफ़ात
बन्दे का काम है फकत माने उसी की बात
बस उसपे तवक्कल है तो ईमान इश्क़ है
सबके लिए पैगाम है रमजान इश्क़ है
रब्ब की रिज़ा पे जान भी क़ुर्बान इश्क़ है
Rabb se lagi ho loh to fir aasan Ishq hai
Sajde mein Sar kataane ka Armaan Ishq hai
Insaan ke urooj ka Meezaan Ishq hai
Allah ka Inaam hai Ramzaan Ishq hai
Pahele Qadam pe Ashraa-e-Rehmat ki Baarishein
Aur Dusre Qadam pe hai Aelaane Magfirat
Aakhir ke Das Dinon mein Mile Aag se Nijat
Hein Aashikon pe Rabb ki Musalsal Nawaazishein
Aur Dab-Dabai Aankhon mein Jannat ki Khwaahishein
Uski Madad se kis qadar aasan Ishq hai
Roze Ajal bandhaa tha jo Paymaan Ishq hai
Allah ka Inaam hai Ramzan Ishq hai
इसार , सब्र , सख्त है , अहसान इश्क़ है
यासीनो मुल्को सुरा-इ-रेहमान इश्क़ है
रब्ब से लगी हो लोह तो फिर आसान इश्क़ है
सजदे में सर कटाने का अरमान इश्क़ है
इंसान के उरूज का मीज़ान इश्क़ है
अल्लाह का इनाम है रमज़ान इश्क़ है
पहले क़दम पे अशरा-इ-रेहमत की बारिशें
और दूसरे क़दम पे है ऐलाने मगफिरत
आखिर के दस दिनों में मिले आग से निजात
हैं आशिक़ों पे रब्ब की मुसलसल नवाज़िशें
और दब-दबाई आंखों में जन्नत की ख्वाशीषें
उसकी मदद से किस क़दर आसान इश्क़ है
रोज़े अजल बंधा था जो पैमान इश्क़ है
अल्लाह का इनाम है रमज़ान इश्क़ है