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Roza Rakhne Aur Kholne Ki Dua In Hindi (रोज़ा रखने खोलने और की दुआ हिन्दी, इंग्लिश, अरबी और उर्दू में)

Roza Rakhne Ki Dua In Hindi
दोस्तों जैसा कि हम सभी जानते हैं के Ramadan Mubarak के महीने में दुनिया भर के सभी मुस्लमान Roza रखते हैं और Ramadan एक बहुत ही पवित्र और बरकत से भरा हुआ महीना है अल्लाह ताला ने इस महीने में अपने सभी बंदों पर Roza रखने को फर्ज़ क़रार दिया है! Roza एक बहुत ही महत्पूर्ण इस्लामी इबादत है! दुनिया और आखेरत में इस के कई फ़ायदे हैं जिसका अंदाजा लगा पाना बहुत ही मुश्किल है आज हम सभी बातों पर एक एक कर के रौशनी डालने की कोशिश करेंगे!

वैसे तो सभी इबादतें अल्लाह ताला के ही लिए हैं लेकिन Roza रखने की अहमियत और फजीलत को बताने के लिए अल्लाह ताला ने फरमाया कि रोज़ा मेरे लिए है और इसका अज्र मैं दूँगा! अब अल्लाह ताला क्या अज्र देगा इंसान का दिमाग़ इसका अंदाज़ा नहीं लगा सकता!

1.Roza Rakhne Ki Dua In Hindi:

अब हम सेहरी करते वक्त यानी फजर का वक्त शुरू होने से पहले जो नींद से बेदार हो कर कुछ खाना खाते हैं रोज़ा रखने के लिए उसे ही इस्लाम में सेहरी करना कहते हैं! आईए जल्दी से अब Sehri Ki Dua In Hindi में जान लेते हैं!

Roza Rakhne Ki Dua:

“नवैतो अन असूमु गदन लिल्लाही ताला मिन शहरे रमज़ान हाज़ा“

हिन्दी में तर्जुमा:

“मैं ने कल की रमज़ान के महीने की अल्लाह ताला के लिए रोज़ा रखने की नीयत की”

2.Roza Rakhne Ki Dua In English:
तो दोस्तों अब हम इंग्लिश में रोज़ा रखने की नीयत जानने की कोशिश करते हैं वो भी इंग्लिश तर्जुमे के साथ!

“Nawaitu An Asoomo Gadan Lillahi Tala Min Shahr E Ramadan Haza”

English में तर्जुमा:

“Maine Kal Ki Ramadan Ke Mahine Ki Allah Tala Ke Liye Roza Rakhne Ki Niyat Ki”

3.Roza Rakhne Ki Dua In Arabic:
तो मेरे प्यारे दोस्तों जब हम रोज़ा रखने की दुआ हिन्दी और इंग्लिश में वो भी तर्जूमे के साथ जान चुके हैं तो अब आईये अरबी में रोज़ा रखने की नियत तर्जुमे के साथ जानने की कोशिश करते हैं!

“وَبِصَوْمِ غَدٍ نَّوَيْتُ مِنْ شَهْرِ رَمَضَانَ”

4.Roza Rakhne Ki Dua In Urdu:
“میں نے کل کی رمضان کے مہینے کی اللہ تعالیٰ کے لیے روزہ رکھنے کی نیّت کی”

1.Roza Kholne Ki Dua In Hindi:

तो दोस्तों आइये हम जल्दी से सबसे पहले रोज़ा खोलने के लिए मज़हबे इस्लाम ने जो दुआ हमे बताए हैं उसे जान लेते हैं वो भी हिन्दी तर्जुमे के साथ!

Roza Kholne Ki Dua:

“अल्लाहुम्मा इन्नी लका सुमतू व-बिका आमन्तु व-अलैका तवक्कलतु व– अला रिजकिका अफ्तरतु”

हिन्दी में तर्जुमा:

“ऐ मेरे अल्लाह बेशक मैं ने तेरे लिए रोज़ा रखा और तुझ पर ही ईमान लाया और तेरे ही ऊपर भरोसा किया और तेरे ही दिए हुए रिज़क से मैं ने अफ्तार किया”

2.Roza Kholne Ki Dua In English:
अब हम इंग्लिश में रोज़ा खोलने की दुआ जानने की कोशिश करते हैं वो भी इंग्लिश तर्जुमे के साथ तो आईए जल्दी से जानते हैं!

“Allahumma Inni Laka Sumtu Wa Bika Aamantu Wa Alayka Tawakkaltu Wa Ala Rizqika Aftartu”

English में तर्जुमा:

“Aye Mere Allah Beshak Maine Tere Liye Roza Rakha Or Tujh Par Hi Imaan Laya Or Tere Hi Upar Bharosa Kiya Or Tere Hi Diye Hue Rizq Se Maine Aftar Kiya”

3.Roza Kholne Ki Dua In Arabic:
अब हम आखरी में रोज़ा खोलने की दुआ अरबी में जानने की कोशिश करते हैं वो भी उर्दू तर्जुमे के साथ!

“اللهم اني لك صمت وبك أمنت وعليك توكلت وعلى رزقك أفطرت”

Roza Kholne Ki Dua In Urdu:
“اے میرے اللّٰہ بے شک میں نے تیرے لیے روزہ رکھا اور تُجھ پر ہی ایمان لایا اور تیرے ہی اوپر بھروسہ کیا اور تیرے ہی دیے ہوئے رزق سے میں نے افطار کیا”

Roza Rakhne Ki Fazilat In Hindi
1. हज़रत सहल बिन साद (रज़िअल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि अल्लाह के प्यारे नबी रसूल सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने ईरशाद फरमाया के स्वर्ग में एक दरवाज़ह है जिसे रय्यान कहा जाता है! क़यामत के दिन रोज़ादार उस से प्रवेश होंगें और उनके सिवा कोई इस दरवाज़े से प्रवेश न होगा! कहा जाएगा रोज़ा रखने वाले कहाँ हैं? तो वे खड़े होंगे, उनके सिवा कोई और उसमे प्रवेश न कर सकेगा, और जब वो प्रवेश कर लेंगे तो दरवाज़ह बन्द कर दिया जाएगा! फिर और कोई इससे हो कर प्रवेश नही कर पाएगा! (सहीह बुख़ारी)

2.अल्लाह के नबी प्यारे आक़ा सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया के जिसने रमज़ान का रोज़ा रखा और उसकी हुदूद को पहचाना और जिस चीज़ से बचना चाहिए उससे बचा तो जो (कुछ गुनाह) पहले कर चुका है उसका कफ़्फ़ारा हो गया (अल अहसान बित्तरतिब सहीह इब्ने हब्बान)

3.अल्लाह के नबी प्यारे आक़ा सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया के जिसने एक दिन का रोज़ा अल्लाह ताला की रज़ा हासिल करने के लिए रखा, अल्लाह ताला उसे जहन्नम से इतना दूर कर देगा जितना के एक कव्वा जो अपने बचपन से उड़ना शुरू करे यहाँ तक के बूढ़ा हो कर मर जाए (अब्बू यअला)

4.अल्लाह के नबी प्यारे आक़ा सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया के जिसने भी अल्लाह ताला की राह में एक दिन का रोज़ा रखा अल्लाह ताला उसके चेहरे को जहन्नम से सत्तर साल की मुसाफ़त दूर कर देगा (सहीह बुख़ारी)

5.अल्लाह के नबी प्यारे आक़ा सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया के जिसने रमज़ान के महीने का एक रोज़ा भी ख़ामोशी और सुकून से रखा उसके लिए जन्नत में एक घर सब्ज़ ज़बर या लाल याक़ूत का बनाया जाएगा (मोअज्जम औसत)

6.अल्लाह के नबी प्यारे आक़ा सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया के हर चीज़ के लिए ज़कात है और जिस्म की ज़कात रोज़ा है और रोज़ा आधा सबर है (इब्ने माजा)

7.अल्लाह के नबी प्यारे आक़ा सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया के रोज़ादार का सोना इबादत और उसकी ख़ामोशी तस्बीह करना और उसकी दुआ क़ुबूल और उसका अमल मक़बूल होता है (शोअबुल ईमान)

8.अल्लाह के नबी प्यारे आक़ा सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया के जो बंदह रोज़े की हालत में सुब्ह करता है, उसके लिए आसमान के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं और उसके आज़ह तस्बीह करते हैं और आसमाने दुनिया पर रहने वाले (फरिश्ते) उसके लिए सूरज डूबने तक मग़फ़ेरत की दुआ करते रहते हैं! अगर वो एक या दो रकअत नमाज़ पढ़ता है तो ये आसमानों में उसके लिए नूर बन जाती है और हुरे ऐंन (यानी बड़ी आँखों वाली हूरों) में से उसकी बीवियाँ कहते हैं ऐ मेरे अल्लाह तू उस को हमारे पास भेज दे हम उसके दीदार की बहुत ज़्यादह मुश्ताक़ हैं! और अगर वो لااله الا الله या سبحن الله या الله أكبر पढ़ता है तो सत्तर हजार फ़रिश्ते उसका स्वाब सूरज डूबने तक लिखते रहते हैं (शोअबुल ईमान)

9.अल्लाह के नबी प्यारे आक़ा सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया के जिस को रोज़े ने खाने या पीने से रोक दिया के जिस की उसकी ख्वाहिश थी तो अल्लाह ताला उसे जन्नती फलों में से खिलाए गा और जन्नती शराब से सैराब करेगा (शोअबुल ईमान)

10.अल्लाह के नबी प्यारे आक़ा सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया के कयामत वाले दिन रोज़हदारों के लिए एक सोने का दस्तरख्वान रखा जाएगा, जिससे वो खाएंगे जब के लोग (हिसाब किताब के) मुंतज़िर होंगे (कंजूल अमाल)

रमज़ान में रोज़ा रखने की शुरुआत कैसे हुई?
रमज़ान में रोज़ा रखने की शुरुआत दुनिया के सबसे पहले इंसान हज़रते आदम अलैहिस्सलाम से हुई! अल्लाह ताला ने हज़रते आदम अलैहिस्सलाम पर अय्यामे बैज़ में यानी चाँद की 13, 14, 15, तारीख़ के तीन रोज़े फ़र्ज़ थे! और यहूदी यानी हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम की क़ौम पर यौमे आशूरा यानी 10 मोहर्रम के दिन और हर हफ़्ते में Sunday के दिन का और कुछ और दिनों के रोज़े फ़र्ज़ थे और नसारा पर रमज़ान के महीने के रोज़े फ़र्ज़ थे!

रोज़ा रखने का मक़सद क्या है?
रमज़ान के महीने में रोज़ा रखने का मक़सद ये है कि रोज़ा के जरिए तक़वा और परहेज़गारी हासिल हो! रोज़े की हालत में चूँ के जान पर सख़्ती की जाती है इसे खाने पीने की हलाल चीजों से भी रोक दिया जाता है तो इस से अपनी ख़्वाहिशात पर क़ाबू पाने की Practice होती है जिस से नफ़्स पर क़ाबू और हराम चीजों से बचने पर ताक़त हासिल होती है जिसके जरिए इंसान गुनाह करने से बचा रहता है!

रोज़ा किन लोगों को रखना ज़रूरी है?
अल्लाह ताला के एक होने और उसके भेजे हुए नबी को इक़रार करने और सभी ज़रुरियाते दीन पर ईमान लाने के बाद जिस तरह हर मुसलमान पर नमाज़ पढ़ना फ़र्ज़ क़रार दिया गया है ठीक उसी तरह Ramadan Mubarak के रोज़े भी हर मुसलमान मर्द और औरत आक़ील और बालिग़ पर फ़र्ज़ हैं!

इस्लाम धर्म में रोज़े क्यूँ रखे जाते हैं?
इस्लाम धर्म में अक्सर अमाल किसी न किसी रूह परवर कहानी को ताज़ह करने के लिए मोक़र्रर किए गए हैं! जैसे: सफ़ा मरवाह के दरमयान हाजियों का दौड़ लगाना  हज़रते हाजरह रज़िअल्लाहू ताला अन्हा की यादगार है के आप अपने बेटे हज़रते इस्माइल अलैहिस्सलाम के लिए पानी तलाश करने के लिए इन दोनों पहाड़ों के बीच सात बार चली और दौड़ लगाई थी! तो अल्लाह ताला को हज़रते हाजरह रज़िअल्लाहु ताला अन्हा की ये बात इतनी पसंद आई की ये अदा बाक़ी रखने के लिए हाजियों और उमराह करने वालों के लिए सफ़ा और मरवाह का दौड़ लगाना वाजिब क़रार दिया! इसी तरह Ramadan Mubarak के महीने में से कुछ दिन हमारे नबी सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने गारे हीरा के गुफ़े में गुज़ारे थे इस दौरान हमारे नबी सल्लाहो अलैहि वसल्लम दिन में खाना खाने से परहेज़ करते और रात को अल्लाह ताला की इबादत में मशगूल रहते थे तो अल्लाह ताला ने इन दिनों की याद ताज़ा करने के लिए रोज़े फ़र्ज़ किए ताके उसके महबूब की ये सुन्नत क़ायम रहे!

रोज़ा डॉक्टर और साइंस दानों के नज़र में
साइंस दानों की एक बड़ी टीम ने अपने Research और Experiment में इस हकीक़त को माना है के रोज़ा रखना कितना फायदेमंद है के इंसान के बीमारियों में कमी आती है जैसा के Oxford University के Professor Moor Palid कहते हैं के मैं इस्लाम धर्म के बारे में पढ़ रहा था जब रोज़े के बारे में पढ़ा तो उछल पड़ा के इस्लाम धर्म ने अपने मानने वालों को कितना अज़ीमुश शान नुस्खा अता किया है मुझे भी शौक़ हुआ लिहाज़ा मैं ने भी मुसलमानों के तरीके पर रोज़े रखने शुरू कर दिए तो मुझे कई सालों से मिआदे पर वर्म था! कुछ ही दिनों के बाद मुझे तकलीफ़ में कमी महसूस होने लगी, मैं रोज़े रखता रहा यहाँ तक के एक महीने के अंदर मेरी बीमारी खतम हो गई!

Highland का पादरी Alf Gaal कहते हैं, मैं ने Shugar, Heart और पेट से परिशान मरीजों को लगातार 30 दिन के रोज़े रखवाए तो Result के तौर पर Shugar वालों की Sugar Control हो गई और Heart के मरीजों की घबराहट और साँस का फूलना कम हो गया और पेट के मरीजों को सब से ज़्यादा फ़ायदा हुआ!

एक अंग्रेज Specialist Psychologist Sigmund Freud का बयान है के रोज़ा रखने से जिस्मानी खिचाओं ज़ेहनी डिप्रेशन और नफ़्सीयाती बीमारियों का खात्मा होता है

डॉक्टरों की एक बड़ी टीम ने ये रिपोर्ट पेश की के मुसलमान नमाज़ पढ़ते हैं और Ramadan Mubarak के महीने में नमाज़ की ज़्यादा पाबंदी करते हैं इसलिए वज़ू करने से नाक, कान और गले की बीमारियों में कमी आ जाती है और मुसलमान रोज़े के कारण कम खाते पीते हैं तो पेट, जिगर और पूठों की बीमारियों में भी कमी आ जाती है!

रोज़ा न रखने के नुकसान हदीस की रौशनी में
हज़रते अबु हुरैरह रज़ीअल्लाहो ताला अन्हो से रिवायत है के अल्लाह के नबी प्यारे आक़ा सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया के जिसने रमज़ान के एक दिन का रोज़ा बग़ैर किसी बीमारी या मजबूरी के न रखा तो ज़माने भर का रोज़ा भी उसका बदला नहीं हो सकता अगर चे बाद में रख भी ले! यानी वो फ़ज़ीलत जो रमज़ान के महीने में रोज़ा रखने की थी अब वो फ़ज़ीलत किसी तरह भी नहीं पा सकता!

बच्चों से रोज़ा कब रखवाया जाए 
जब बच्चा जैसे ही आठवाँ साल में क़दम रखे तो उसके Parents को चाहिए के  वो उसे नमाज़ पढ़ने और रोज़ा रखने का हुक्म दे और जब बच्चा ग्यारह साल का हो जाए तो Parents पर वाजिब है के नमाज़ न पढ़ने और रोज़ा न रखने पर पिटाई करे इस शर्त के साथ कि रोज़ा रखने की ताक़त हो और रोज़ा नुकसान न करे और अगर बच्चे ने रोज़ा रख कर तोड़ दिया तो उसे क़ज़ा का हुक्म नहीं देंगे!

रोज़ा रखने वालों का ईनाम
अल्लाह ताला के तरफ़ से रोज़ा रखने वालों के लिए ये ख़ुशख़बरी है के जिसने इस तरह रोज़ा रखा जिस तरह रोज़ा रखने का हक़ था यानी खाने पीने और जेमा से बचने के साथ साथ अपने जिस्म के सभी Parts को भी गुनाहों से बाज़ रखा तो वो रोज़ा अल्लाह ताला के फ़ज़ल से उस के लिए तमाम पिछले गुनाहों का कफ़्फ़ारा हो गया! अल्लाह ताला का फरमान है कि रोज़ा मेरे लिए है और उसका बदला मैं ख़ुद ही दूँगा यानी रोज़ा रखने का बदला मैं ख़ुद ही हूँ यानी रोज़ा रख कर रोज़ा दार ब-ज़ाते ख़ुद अल्लाह ताला ही को पा लेता है!

हज़रते अबु हुरैरह रज़ीअल्लाहो ताला अन्हो से रिवायत है के अल्लाह के नबी प्यारे आक़ा सल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया के आदमी के हर नेक काम का बदला दस से सात गुना तक दिया जाता है, अल्लाह ताला ने फरमाया सिवाए रोज़े के, के रोज़ा मेरे लिए है और उसका बदला मैं ख़ुद ही दूँगा! बंदह अपनी ख़्वाहिश और खाने को सिर्फ़ मेरी वजह से छोड़ता है! रोज़ा रखने वालों के लिए दो बहुत ही बड़ी खुशियाँ हैं एक इफ़्तार के वक़्त और एक अपने रब से मुलाक़ात के वक़्त, रोज़ादार के मुँह की बू अल्लाह ताला के नज़दीक मुश्क की खुशबू से ज़्यादा पाकीज़ा है!

रोज़े कितने प्रकार के होते हैं
रोज़ा तीन प्रकार के होते हैं: (1) अवाम का रोज़ा (2) ख़्वास का रोज़ा (3) अख़्ससुल ख़वास का रोज़ा

(1) रोज़ा का मतलब होता है “रुकना” लेहाज़ा इस्लाम धर्म में सुब्ह सादिक़ से लेकर सूरज डूबने तक जान बूझ कर खाने पीने और जेमा से रुके रहने को रोज़ा कहते हैं और यही “अवाम” यानी आम लोगों का रोज़ा है!

(2) खाने पीने और जेमा से रुके रहने के साथ साथ जिस्म के तमाम Parts को बुराईओं से रोकना “ख़्वास” यानी ख़ास लोगों का रोज़ा है!

(3) ख़ुद को तमाम कामों से रोक कर सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह ताला के तरफ़ ध्यान लगाना तो ये “अख़्ससुल ख़वास” यानी खासुल ख़ास लोगों का रोज़ा है!

रोज़े से जुड़े पाँच महत्वपूर्ण तथ्य:
(1) हज़रत आदम अलैहिस्सलाम हर महीने के चाँद की 13,14,15 तारीख़ को रोज़ा रखते थे!

(2) हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ईदुल फित्र और बक़रीद के सिवा हमेशा रोज़ा रखते थे!

(3) हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम एक दिन छोड़ कर एक दिन रोज़ा रखते थे!

(4) हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम तीन दिन महीने के शुरू में, तीन दिन बीच में और तीन दिन आख़िर में रोज़ा रखा करते थे!

(5) हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम हमेशा रोज़ा रखा करते थे कभी भी रोज़ा नही छोड़ते थे!

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