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Tamheede Imaan Sharif Post 2 | Imaan Walo Ka Imtehaan

Imaan Walo Ka Imtehaan  
!!! ईमान वालो का इम्तेहान !!!

Tamheede Imaan Sharif Post 2️⃣

 

الٓمّٓ ( ) اَحَسِبَ النَّاسُ اَنْ یُّتْرَکُوْآ اَنْ یَّقُوْلُوْآ اٰمَنَّا وَھُمْ لَا ( ) یُفْتَنُوْنَ   
तर्जमा:— “क्या लोग इस घमंड में है कि सिर्फ़ इतना कह लेने पर छोड़ दिए जाएंगे की हम ईमान लाए और उनकी आजमाइश न होगी।”   
(सूरह अनकबूत, पारा: 20, रूकु: 13, आयत: 1:2)

 

 

✍? नोट:—यह आयत मुसलमानो को होशियार कर रही है..!
कि देखो कलिमागोयी ज़बानी अदाए मुसलमानी (यानी सिर्फ ज़बान से कलमा पढ़ कर खुद को मुसलमान कह लेने से) तुम्हारा छुटकारा न होगा। 
                !!!!!….. हां हां सुनते हो…..!!!!!

“आजमाएं जाओगे और आजमाइश में पूरे निकले तो मुसलमान ठहरोगे ।”
हर शय की आजमाइश में यही देखा जाता है की जो बातें उसके हकीकी व वाकई होने को दरकार है वह उसमें हैं या नहीं ? ( यानी आजमाइश के वक्त यह देखा जाता है की सच्चे होने के लिए जो बातें होनी चाहिए वह हैं या नहीं)?
अभी कुरआन व हदीस इरशाद फरमा चुका की ईमान के हकीकी व वाकई होने को दो बातें ज़रूरी है।
1️⃣?? हुज़ूर पुरनूर (ﷺ) की ताज़िम ।
2️⃣?? हुज़ूर पुरनूर  (ﷺ) की मोहब्बत तमाम जहान पर तकदीम (preference) हो…!!!
 

✍?नोट:— तो इसकी आज़माइश का सही तरीका ये है की तुमको जिन लोगों से कैसी ही ताज़ीम, कितनी ही मोहब्बत, कितनी ही दोस्ती का इलाका हो, जैसे तुम्हारे बाप, तुम्हारे उस्ताद, तुम्हारे पीर, तुम्हारे बड़े, तुम्हारे असहाब, तुम्हारे अहबाब, तुम्हारे मौलवी, तुम्हारे हाफ़िज़, तुम्हारे मुफ्ती, तुम्हारे वाइज वगैरह वगैरह कशे बासत (कोई भी) जब वह हुज़ूर पुरनूर  (ﷺ) की शान ए पाक में गुस्ताखी करे असलन तुम्हारे कल्ब (दिल) में उसकी मोहब्बत का नाम ओ निशान बाकी न रहे, फौरन उनसे जुदा हो जाओ, उनको दूध से मक्खी की तरह निकाल का फेंक दो, उसकी सूरत, उसके नाम से नफरत खाओ। फिर न तुम अपने रिश्ते, इलाके, दोस्ती, उल्फत का पास (लिहाज़) करो ना उसकी मौलवियत, मशिखियत, बुजूर्गी, फजीलत को खतरे में लाओ, आखिर ये जो कुछ भी था हुज़ूर ए पाक  (ﷺ) की गुलामी की बिना पर था । जब ये शख्स उन्हीं की शान में गुस्ताख़ हुआ फिर हमें उससे क्या मतलब रहा? उसके जुब्बे उसके इमामे पर क्या जाएं, क्या बहुतेरे यहूदी जुब्बे नहीं पहनते? अमामे नहीं बांधते? उसके नाम, इल्म व जाहिर फ़ज़ल की लेकर क्या करें? क्या बहुतेरे पादरी ब–कसरत फलसफी (scientist) बड़े बड़े उलूम ओ फूनून नहीं जानते और अगर यही नहीं बल्कि हुज़ूर ए अकरम  (ﷺ) के मुकाबिल तुमने उसकी बात बनानी चाही, 
उसने हुज़ूर ए पाक  (ﷺ) की गुस्ताखी की और तुमने उससे दोस्ती बनानी चाही, निबाही या उसे हर बुरे से बदतर न जाना या उसे बुरा कहने पर बुरा माना या इसी कद्र की तुमने इस काम में बेपरवाही मनाई या तुम्हारे दिल में उसकी तरफ से सख़्त नफ़रत न आई, 
“तो लिल्लाह अब तुम ही इंसाफ करो की तुम ईमान के इम्तेहान में कहां पास हुए?” 
कुरआन व हदीस ने जिस पर हुसूल ए ईमान का मदार रखा था तुम उससे कितनी दूर निकल गए (यानी ईमान का हासिल होना जिसकी ताज़ीम पर ठहरा है तुम उससे कितनी दूर निकल गए) ।
मुसलमानों ! क्या जिसके दिल में हुज़ूर ए अकरम (ﷺ) की ताज़ीम, मोहब्बत होगी वह उन के दुश्मनो की वक्अत (respect) करेगा? 
अगरचे उसका पीर या उस्ताद या बाप ही क्यों न हो, क्या जिसे हुज़ूर ए पाक  (ﷺ) तमाम जहान से ज्यादा प्यारे होंगे वह उनके गुस्ताख से फौरन सख्त शदीद नफरत न करेगा अगरचे उसका दोस्त या बिरादर (भाई) या बेटा ही क्यू ना हो? 
“लिल्लाह ! अपने हाल पर रहम करो। और अपने रब की बात सुनो, देखो वह क्योंकर तुम्हे अपनी रहमत की तरफ बुलाता है।”

 

  !!!…ईमान वालों को अल्लाह की तरफ से इन‘आम…!!!  
لَّا تَجِدُ قَوْمًا يُّؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ لْاٰخِرِ يُوَآدُّونَ مَنْ حَآدَّ اللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَلَوْ كَانُوٓا۟ ءَابَآءَهُمْ أَوْ أَبْنَآءَهُمْ أَوْ إِخْوَٰنَهُمْ أَوْ عَشِيرَتَهُمْ ۚ أُو۟لَٰٓئِكَ كَتَبَ فِى قُلُوبِهِمُ ٱلْإِيمَٰنَ وَأَيَّدَهُم بِرُوحٍ مِّنْهُ ۖ وَيُدْخِلُهُمْ جَنَّٰتٍ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَا ۚ رَضِىَ ٱللَّهُ عَنْهُمْ وَرَضُوا۟ عَنْهُ ۚ أُو۟لَٰٓئِكَ حِزْبُ ٱللَّهِ ۚ أَلَآ إِنَّ حِزْبَ ٱللَّهِ هُمُ ٱلْمُفْلِحُونَ o  
तर्जमा:— “तू न पाएगा उन्हें जो ईमान लाए हो अल्लाह और कयामत पर की उनके दिल में ऐसों की मोहब्बत आने पाए जिन्होंने खुदा (ﷻ) और रसूल (ﷺ) से मुखालिफत की चाहे वह उनके बाप या बेटे या भाई या अज़ीज़ ही क्यों न हों यह है वह जिनके दिलों में अल्लाह ने ईमान नक्श कर दिया और अपनी तरफ की रूह से उनकी मदद फरमाई और उन्हें बागों में ले जाएगा जिनके नीचे नहरें बह रही है हमेशा रहेंगे उनमें… अल्लाह उनसे राज़ी और वो अल्लाह से राज़ी, यही लोग अल्लाह वालें हैं। और अल्लाह वाले ही मुराद को पहुंचे।”  
(सुरह अल मुजादिल, पारा: 28, रुकु:3, आयत:22)

 

✍?नोट:—इस आयत ए करीमा में साफ फरमा दिया की जो अल्लाह ﷻ और उसके प्यारे रसूल  ﷺ की  शान ए पाक में गुस्ताखी करे मुसलमान उससे दोस्ती न करेगा, जिसका सही मतलब ये हुआ की जो उससे दोस्ती रखे वह मुसलमान न होगा । फिर इस हुक्म का कतअन होना नफसील के साथ इरशाद फरमाया कि बाप, बेटे, भाई, अज़ीज़, सबको गिनाया यानी कोई कैसा ही तुम्हारे ख्याल में मुअज्जम (respected) या कैसा ही तुम्हे दिल से महबूब हो अगर वह  हुज़ूर ए पाक  (ﷺ) के शान ए पाक में गुस्ताख हुआ तो उससे मोहब्बत नहीं रख सकते उसकी ताज़ीम (respect) नहीं कर सकते वरना मुसलमान न रहोगे। मौला तबारक व ताअला का इतना फरमान ही मुसलमानों को लिए बस था मगर देखो वह तुम्हे अपनी रहमत की तरफ बुलाता है, अपनी अज़ीम ने’मतों का लालच दिलाता है की अगर अल्लाह ﷻ  और उसके प्यारे रसूल  (ﷺ) की अजमत के आगे तुमने किसी का लिहाज ना किया किसी से अलाका ना रखा तो तुम्हे क्या क्या फायदे होंगे। 

 

1️⃣?? अल्लाह ताअला  तुम्हारे दिल में ईमान नक्श फरमा देगा जिसमे इंशा अल्लाह हुस्ने खातिमा को बशारत ए जलीला (बहुत बड़ी खुश खबरी) है की अल्लाह का लिखा नहीं मिटता यानी इस आयत पर अमल करने वाले को यह बशारत दी जा रही है की उसका ईमान सलामत रहेगा और खातिमा ईमान पर होगा क्यों की अल्लाह का लिखा मिटा नही करता और यह ऐसी ने’मत है जिस पर सब कुछ कुर्बान।  
2️⃣?? अल्लाह पाक रूहुल कुदुस (फरिश्तों) के जरिए तुम्हारी मदद फरमाएगा ।   
3️⃣?? तुम्हे हमेशा के लिए जन्नत में ले जाएगा जिसके नीचे नहरे जारी है।  
4️⃣??तुम खुदा के गिरोह हो जाओगे,यानी अल्लाह वाले कहलाओगे।  
5️⃣?? मुंह मांगी मुरादें पाओगे बल्कि उम्मीद व ख्याल व गुमान से करोड़ों दर्जे ज्यादा ।  
6️⃣?? सबसे ज्यादा यह की अल्लाह तुमसे राज़ी होगा।  
7️⃣?? यह की फरमाता है मै तुमसे राज़ी तुम मुझसे राज़ी। बंदे के लिए इससे ज्यादा और क्या ने’मत होगी की उसका रब उससे राज़ी हो मगर इंतेहाय बंदा नवाज़ी ये की फरमाया की अल्लाह उनसे राज़ी और वह भी अल्लाह से राज़ी।

मुसलमानो ! खुदा लगती कहना अगर आदमी करोड़ों जाने रखता हो और वह सबके सब इन अज़ीम दौलतों पर निसार कर दे तो वल्लाह की मुफ्त पाएं फिर उसे तौहीन करने वाले शख्स से अलाका ताज़ीम व मोहब्बत यकलख्त कता कर देना यानी उसे छोड़ देना कितनी बड़ी बात है जिस पर  अल्लाह ताअला इन बहुत ज़्यादा कीमती ने’मतों का वादा फरमा रहा है और उसका वादा यकीनन सच्चा है। कुरआन करीम की आदतें करीमा है की जो हुक्म फरमाता है जैसे की उसके मानने वालों को अपनी ने’मतों की बशारत देता है न मानने वालों पर अपने अज़ाबों का ताज़ियाना (सजा) भी रखता है की जो पस्त हिम्मत ने’मत के लालच में न आएं सजाओं के डर से राह पाएं ।
वह अज़ाब भी सुन लीजिए।

!!!…गुस्ताखे रसूल से मेल जोल रखने वालों पर अल्लाह का अज़ाब…!!!


یٰۤاَیُّہَا الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡا لَا تَتَّخِذُوۡۤا اٰبَآءَکُمۡ وَ اِخۡوَانَکُمۡ اَوۡلِیَآءَ اِنِ اسۡتَحَبُّوا الۡکُفۡرَ عَلَی الۡاِیۡمَانِ ؕ وَ مَنۡ یَّتَوَلَّہُمۡ مِِّنۡکُمۡ فَاُولٰٓئِکَ ہُمُ الظّٰلِمُوۡنَ o  
तर्जमा:— “ऐ ईमान वालों! अपने बाप अपने भाइयों को दोस्त न बनाओ अगर वह ईमान पर कुफ्र पसंद करें और तुमने जो रिफकत करें और वही लोग सीतमगर हैं।”  
(सूरह अत तौब, पारा: 10, रुकु:9, आयत:23)  
और फरमाता है


یٰۤاَیُّہَا  الَّذِیۡنَ  اٰمَنُوۡا  لَا تَتَّخِذُوۡا عَدُوِِّیۡ  وَ عَدُوَّکُمۡ  اَوۡلِیَآءَ  تُلۡقُوۡنَ اِلَیۡہِمۡ  بِالۡمَوَدَّۃِ  وَ قَدۡ کَفَرُوۡا بِمَا جَآءَکُمۡ  مِِّنَ الۡحَقِِّ ۚ یُخۡرِجُوۡنَ الرَّسُوۡلَ وَ  اِیَّاکُمۡ  اَنۡ  تُؤۡمِنُوۡا بِاللّٰہِ رَبِِّکُمۡ ؕ اِنۡ کُنۡتُمۡ خَرَجۡتُمۡ جِہَادًا فِیۡ سَبِیۡلِیۡ وَ ابۡتِغَآءَ  مَرۡضَاتِیۡ ٭ۖ  تُسِرُّوۡنَ اِلَیۡہِمۡ  بِالۡمَوَدَّۃِ ٭ۖ وَ اَنَا  اَعۡلَمُ  بِمَاۤ اَخۡفَیۡتُمۡ وَ مَاۤ  اَعۡلَنۡتُمۡ  ؕ وَ مَنۡ یَّفۡعَلۡہُ مِنۡکُمۡ فَقَدۡ ضَلَّ  سَوَآءَ  السَّبِیۡلِ o  لَنۡ  تَنۡفَعَکُمۡ اَرۡحَامُکُمۡ وَ لَاۤ  اَوۡلَادُکُمۡ ۚۛ یَوۡمَ الۡقِیٰمَۃِ ۚۛ یَفۡصِلُ بَیۡنَکُمۡ ؕ وَ اللّٰہُ  بِمَا تَعۡمَلُوۡنَ بَصِیۡرٌ o  
तर्जमा:— “ऐ ईमान वालों ! मेरे और अपने दुश्मनों को दोस्त ना बनाओ तुम छुपकर उनसे दोस्ती रखते हो और तुममे जो ऐसा करेगा वह जरूर सीधी राह से बहका, तुम्हारे रिश्ते और तुम्हारे बच्चे तुम्हे कुछ नफा (फायदा) ना देंगे। कयामत के दिन तुममें और तुम्हारे प्यारों में जुदाई डाल देगा की तुममें एक दूसरे के कुछ काम न आ सकेगा और अल्लाह तुम्हारे आमाल को देख रहा है।  
(सुरह अल मुमतहिनह, पारा:28, रुकु:7, आयत: 1 & 3)


 और फरमाता है
وَ مَنۡ  یَّتَوَلَّہُمۡ  مِِّنۡکُمۡ فَاِنَّہٗ  مِنۡہُمۡ ؕ اِنَّ اللّٰہَ  لَا یَہۡدِی الۡقَوۡمَ  الظّٰلِمِیۡنَ o  
तर्जमा:— “जो तुममें उनसे कोई दोस्ती करेगा तो बेशक वह उन्हीं में से है। बेशक अल्लाह हिदायत नही करता जालिमों को।”  
(सूरह अल माईदा, पारा: 6, रुकु:12, आयत:56)


✍?नोट:— पहली दो आयतों में तो उनसे दोस्ती करने वालों को ज़ालिम व गुमराह ही फरमाया था मगर इस आयते करीमा ने बिल्कुल तस्फिया (फैसला) फरमा दिया की जो उनसे दोस्ती रखे वह भी उन्ही में से है, उन्ही की तरह काफिर है, उसके साथ एक रस्सी में बांधा जाएगा,और वह अज़ाब भी याद रखें की तुम छुप छुपकर उनसे मेल जोल रखते हो और तुम्हारे छुपे ज़ाहिर सबको खूब जानता है। अब वह रस्सी भी सुन लीजिए जिसमे रसूलल्लाह  (ﷺ) की शान ए अकदस में गुस्ताखी करने वाले बांधे जायेंगे। 
                        अल्लाह हु अकबर

Tamheede Imaan Sharif

  !!!….तुम्हारा रब तबारक व ताअला फरमाता है…!!!


وَ الَّذِیۡنَ یُؤۡذُوۡنَ رَسُوۡلَ اللّٰہِ لَہُمۡ عَذَابٌ  اَلِیۡمٌ o  
तर्जमा:— “वह जो रसूलल्लाह (ﷺ) को ईज़ा (तकलीफ) देते हैं उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है।”  
(सुरह अत तौबा, पारा:10, रुकु:14, आयत:61)


        और फरमाता है


اِنَّ الَّذِیۡنَ یُؤۡذُوۡنَ اللّٰہَ  وَ رَسُوۡلَہٗ  لَعَنَہُمُ  اللّٰہُ  فِی الدُّنۡیَا وَ الۡاٰخِرَۃِ  وَ اَعَدَّ لَہُمۡ  عَذَابًا مُّہِیۡنًا o  
तर्जमा:— “बेशक जो अल्लाह व रसूल (ﷺ) को ईज़ा (तकलीफ) देते हैं उन पर अल्लाह की लानत है दुनिया व आखिरत में और अल्लाह ने उनके लिए जिल्लत का अज़ाब तैयार कर रखा है।”  
(सूरह अल अजहब, पारा:22, रुकु: 4, आयत: 57)

✍?नोट:— अल्लाह पाक ईज़ा (तकलीफ) से पाक है उसे कौन तकलीफ दे सकता है मगर उसने अपने हबीब (ﷺ) की शान ए अकदस में गुस्ताखी को अपनी तकलीफ को फरमाया । इन आयतों से उस शख्स पर जो हुज़ूर ए पाक (ﷺ) के गुस्ताखो से मोहब्बत का बरताओ करे, सात कोड़े साबित हुए:—

1️⃣?? वह ज़ालिम है।
2️⃣?? गुमराह है।
3️⃣?? काफिर है।
4️⃣?? उसके लिए दर्दनाक अज़ाब है।
5️⃣?? वह दुनिया व आखिरत में जलिल व ख्वार है।
6️⃣?? उसने अल्लाह वाहिद कहहार को तकलीफ दी।
7️⃣?? उस पर दोनो जहान में खुदा की लानत है ।

  !!!…अल्लाह हु अकबर…!!!

ऐ मुसलमानों ! ऐ मुसलमानों ! ऐ उम्मते सय्यदुल इन्स वल जिन्न ! (ﷺ) खुदारा ज़रा इंसाफ कर, वह साथ ने’मत बेहतर है जो उन लोगो से दोस्ती रिश्तेदारी तोड़ देने पा मिलते हैं (यानी अल्लाह ﷻ व रसूल  ﷺ के दुश्मनों से संबंध तोड़ देने पर मिलते हैं) की 
“दिल में ईमान जम जाए, अल्लाह मददगार हो, जन्नत मकाम हो, अल्लाह वालों में शुमार हो, मुरादें मिले, खुदा तुझसे राज़ी हो, तू खुदा से राज़ी हो।”
         या ये सात कोड़े भले है जो उन लोगो से ता’ल्लुक लगा रहने पर पड़ेंगे की
“ज़ालिम है, गुमराह है, काफिर है, जहन्नमी है, आखिरत में जलीलो ख्वार है, खुदा को ईज़ा दे, खुदा दोनों जहां में लानत करे।”
कौन कह सकता है की यह सात अच्छे हैं कौन कह सकता है की वो सात छोड़ने के है मगर जाने। बिरादर खाली यह कह देना तो काम नही देता न वहां तो इम्तेहान की ठहरी है, अभी आयत सुन चुके क्या इस भुलावे में हो की बस जुबान से कहकर छूट जाओगे इम्तेहान न होगा?

Tamheede Imaan Sharif Post 3

 

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