!!!…हां यही इम्तेहान है…!!!
“देखो ये अल्लाह वाहिद कहहार की तरफ से तुम्हारी जांच है…!!!”
“देखो वह फरमा रहा है की रिश्ते अलाके कयामत के दिन काम न आयेंगे मुझ से तोड़कर किस्से जोड़ते हो…!!!”
“देखो वह फरमा रहा है कि मैं गाफिल नहीं हूं, मैं बेखबर नहीं हूं, तुमहारे आमाल देख रहा हूं, तुम्हारे अकवाल सुन रहा हूं, तुम्हारे दिलों की हालत से खबरदार हूं…!!!”
“देखो बेपरवाही न करो, पराए के पीछे अपनी आखिरत ना बिगाड़ो, अल्लाह ﷻ और उसके प्यारे रसूल ﷺ के मुकाबिल ज़िद से काम न लो…!!!”
“देखो वह तुम्हे अपने सख़्त अज़ाब से डराता है, उसके अज़ाब से कहीं पनाह नहीं…!!!”
“देखो वह तुम्हे अपनी रहमत की तरफ बुलाता है, बे उसकी रहमत से कहीं निबाह नहीं…!!!”
“देखो गुनाह तो नीरे गुनाह होते हैं जिन पर बंदा अज़ाब का हकदार हो जाता है मगर ईमान नहीं जाता है, अजाब होकर ख्वाह रब की रहमत हबीब ﷺ की शफ़ाअत से बे अज़ाब ही छुटकारा हो जाएगा…!!!”
“हुज़ूर ए पाक ﷺ की ताज़ीम का मकाम है, उनकी अजमत उनकी मोहब्बत मदार ए ईमान है…!!!”
“कुरआन मजीद की आयते सुन चुके की जो इस मामले में कमी करे उस पर दोनो जहान में खुदा की लानत है…!!!”
“देखो जब ईमान गया तो अब्दुल आबाद (यानी हमेशा के लिए) तक कभी किसी तरह हरगिज़ आज़ाब ए शदीद (सख़्त अज़ाब) से रिहाई नहीं होगी। गुस्ताखी करने वाले जिनका तुम यहां कुछ पास लिहाज़ कर रहे हो वहां वो अपनी भुगत रहे होंगे, तुम्हे बचाने न आयेंगे और अगर आ भी गए तो क्या कर लेंगे, फिर ऐसों का लिहाज़ करके अपनी जान को हमेशा हमेशा के लिए गज़ब ए जब्बार व अज़ाब ए नार (दोजख) में फसा देना क्या अक्ल की बात होगी…!!!”
“लिल्लाह – लिल्लाह ज़रा देर के लिए अल्लाह ﷻ और उसके प्यारे रसूल ﷺ के सिवा सबसे नज़र उठाकर आंखे बंद करो और गर्दन झुकाकर अपने आपको अल्लाह वाहिद कहहार के सामने हाज़िर समझो और नीरे खालिस सच्चे इस्लामी दिल के साथ हुज़ूर ए पाक ﷺ की अज़ीम अजमत बुलंद इज्ज़त रफ़ीअ वजाहत जो उनके रब ने उन्हें बख्शी और उनकी ताज़ीम उनकी तौकीर पर ईमान व इस्लाम की बुनियाद रखी उसे दिल में जमा कर इंसाफ करना और ईमान से कहना…!!!”
“क्या जिसने कहा की शैतान की वुसअत नस्स से साबित हुई फख्र ए आलम की वुसअत इल्म की कौन से नस्स कतई है।”
माज’अल्लाह माज’अल्लाह
क्या उसने हुज़ूर ए पाक (ﷺ) की शान ए पाक में गुस्ताखी न की? क्या उसने इबलिस लईन के इल्म को रसूल ﷺ के इल्म ए अकदस पर न बढ़ाया?
क्या वह रसूल ए अकदस ﷺ की वुसअते इल्म से काफिर होकर शैतान की वुसअते इल्म पर ईमान न लाया?
मुसलमानों ! खुद उसी बदगो, गुस्ताख से इतना कह दो की तुम्हारा इल्म तो शैतान के बराबर है, देखो तो वह बुरा मानता है या नहीं हालाकि उसे तो इल्म में शैतान से कम भी नहीं कहा गया बल्कि शैतान के बराबर ही बताया फिर कम कहना क्या तौहीन न होगी और अगर वह अपनी बात पालने को इस पर नागवारी ज़ाहिर न करे अगरचे दिल में कतअन नागवार मानेगा तो उसे छोड़िए और किसी मुअज्जम (इज़्ज़त दार शख्स) से कह देखिए और पूरा हो इम्तेहान मकसूद हो तो क्या कचहरी में जाकर अपने किसी हाकिम को इन्ही लफ्ज़ो में ताबीर कर सकते हैं। देखिए अभी अभी खुला जाता है की तौहीन हुई और बेशक हुई फिर क्या हुज़ूर ए पाक (ﷺ) की तौहीन करना कुफ्र नही, ज़रूर है और बिल यकीन है।
“क्या जिसने शैतान की वुसअते इल्म को नसस से साबित मानकर हुज़ूर ए अकदस ﷺ के लिए वुसअते इल्म मानने वाले को कहा तमाम नुसूस को रद्द करके एक शिर्क साबित करता है और कहा शिर्क नहीं तो कौन सा ईमान का हिस्सा है।”
उसने इबलीस लइन को खुदा का शरीक माना या नहीं । ज़रूर माना की जो बात मखलूक में एक के लिए साबित करना शिर्क होगी वह किसी के लिए साबित की जाए
कत’अन शिर्क ही रहेगी की खुदा का शरीक कोई नही हो सकता, जब रसूलल्लाह ﷺ के लिए यह वुसअते इल्म माननी शिर्क माननी शिर्क ठहराई जिसमे कोई हिस्सा ईमान का नही जो ज़रूर इतनी वुसअत खुदा की वह खास सिफत हुई जिसको खुदाई लाज़िम है जब तो नबी ﷺ के लिए उसका मानने वाला काफ़िर के लिए साबित मानी तो साफ साफ शैतान को खुदा का शरीक ठहरा दिया ।
मुसलमानों ! क्या यह अल्लाह ताआला और उसके रसूल ﷺ दोनो की तौहीन न हुई? ज़रूर हुई अल्लाह की तौहीन तो ज़ाहिर है की उसका शरीक बनाना वह भी किसे? इबलीस लइन को…और रसूलल्लाह ﷺ की तौहीन यूं की इबलीस का मर्तबा इतना बढ़ा दिया की वह खुदा की खास सिफत में हिस्सेदार है और यह उससे ऐसे महरूम की उनके लिए साबित मानो तो मुशरिक हो जाओ ।
मुसलमानों ! क्या खुदा व रसूल को तौहीन करने वाला काफ़िर नही? ज़रूर है क्या जिसने कहा कि
“बाज़ उलूम ए गैबिया मुराद हैं तो इसमें हुज़ूर ﷺ क्या तख्सीस है ऐसा इल्मे गैब जैद व उमर बल्कि हर सबी व मजनून बल्कि जमीअ हैवानात व बहाएम के लिए भी हासिल है !
माज अल्लाह माज अल्लाह ।
क्या उसने हुज़ूर ए पाक ﷺ को सरीह गाली ना दी क्या नबिए करीम ﷺ को इतना ही इल्मे गैब दिया गया था जितना हर पागल और जानवर और हर चौपाए हो हासिल है। माज अल्लाह
मुसलमानों ! मुसलमानों ! ऐ हुज़ूर ए पाक ﷺ के उम्मति तुझे अपने दीन व ईमान का वास्ता क्या इस नापाक
मल’उन गाली के सरिह गाली होने में तुझे कुछ शुबा गुजर सकता है?
माज अल्लाह माज अल्लाह
क्या हुज़ूर ए पाक ﷺ की अजमत तेरे दिल से ऐसी निकल गई है की शदीद गाली में भी उनकी तौहीन न जाने और अगर अब भी तुझे ऐतबार न आए तो खुद उन्ही गुस्ताखों से पूछ देख की तुम्हे और तुम्हारे उस्तादों और पिरों को कह सकते हैं की ऐ फलां तुझे इतना ही इल्म जितना सूअर को है तेरे उस्ताद को ऐसा ही इल्म था जैसा कुत्ते को है तेरे पीर को इसी कद्र इल्म था जिस कद्र गधे को है या मुख्तसर तौर पर इतना ही हो की ओ इल्म में गधे, कुत्ते, सूअर के बराबर लो देखो तो उसमे अपने उस्ताद व पीर की तौहीन समझते हैं या नहीं? कतअन समझेंगे और काबू पाएं तो सर हो जाएं फिर क्या सबब है की जो कलिमा उनके हक़ में तौहीन है हुज़ूर ए पाक ﷺ की तौहीन न हो ! क्या माज अल्लाह उनकी अजमत उनकी अजमत इनसे भी गई गुजरी है? क्या इसी का नाम ईमान है?
हाशा लिल्लाह ! हाशा लिल्लाह !
क्या जिसने कहा क्यों की हर शख्स को किसी न किसी ऐसी बात का इल्म होता है जो दुसरे शख्स से छुपी हुई है तो चाहिए की सबको आलिमुल गैब (गैब का जानने वाला) कहा जाए फिर अगर ज़ैद इसका इल्टेजाम (लाज़िम पकड़ना यानी ज़रूरी मानना) कर लें की हां में सबको आलिमुल गैब कहूंगा तो फिर इल्में गैंब को मिंजुम्ला कमालाते नबविया शुमार क्यों किया जाता है । जिस अम्र में मोमिन बल्कि इंसान की भी खुसूसियत ना हो वह कमालाते नुबूवत से कब हो सकता है? और अगर इल्तेजाम ना किया जाए तो नबी और गैरे नबी में वजहें फर्क बयान करना जरूर है । इंतहा ! क्या रसूलल्लाह ﷺ और जानवरों, पागलों, में फ़र्क न जानने वाला हुज़ूर को गाली नहीं देता, क्या अल्लाह ﷻ के कलाम का साफ साफ रद्द ना किया और झूठा न बताया ।
अल्लाह हू अकबर ऐ मुसलमानों खुदा के वास्ते ज़रा दिल से फैसला करना !!!