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Duniya ke ae musafir Manzil teri kabar hai / दुनिया के ऐ मुसाफिर मंजिल तेरी कब्र है

 
 
Duniya ke Aye Musafir ! Manzil Teri qabar hai
Tay kar raha hai jo Tu, Do Din ka ye safar hai

Jab se bani hai Duniya, Lakhon karodon aaye
Baqi raha na koi, mitti mein sab smaaye
Is baat ko na bhulo sab ka yahi hashar hai
Manzil Teri qabar hai

Duniya ke Aye Musafir !

Ye aalishan bangale, kisi kaam ke nahi hai
Mehlon mein sone waale, mitti mein so rahe hai
Do gaz zamee.n ka tukda, chhota sa Tera ghar hai
Manzil Teri qabar hai

Duniya ke Aye Musafir !

Ankho.n se Tune Apni dekhe kai janaaze
Hatho.n se Tune apne dafnaae kitne murde
Anjaam se Tu apne kyu.n itna be-khabar hai
Manzil Teri qabar hai

Duniya ke Aye Musafir !

Duniya ke Aye Musafir ! Manzil Teri qabar hai
Tay kar raha hai jo Tu, Do Din ka ye safar hai
 

दुनिया के ऐ मुसाफिर

मंज़िल तेरी क़ब्र है

तय कर रहा है जो तू

दो दिन का ये सफ़र है

दुनिया बनी हे जब से

लाखों करोड़ो आये

बाकी रहा ना कोई

मिट्टी में सब समाये

इस बात को ना भूलो

सब का यही हश्र हे

दुनिया के ऐ मुसाफिर...

आँखों से तूने अपनी

कितने जनाज़े देखे

हाथो से तूने अपने

दफ़नाये कितने मुर्दे

अंजाम से तू अपने

क्यूं इतना बेखबर हे

दुनिया के ऐ मुसाफिर...

मखमल पे सोने वाले

मिट्टी में सो रहे हे

शाहो गदा बराबर

एक साथ सो रहे हे

दोनो हुवे बराबर

यही मौत का असर है

दुनिया के ऐ मुसाफिर...

ये आली-शान बंगले

कुछ काम के नही हे

ये ऊंची ऊंची इमारत

कुछ काम की नहीं है

दो गज ज़मीन का टुकड़ा

छोटा सा तेरा घर हे

दुनिया के ऐ मुसाफिर...

मिट्टी के पुतले तुझ को

मिट्टी में ही सुमाना

एक दिन वह तू के आया

एक दिन वह तुझ को जाना

रहना नहीं हे तुझ को

जारी तेरा सफ़र हे

दुनिया के ऐ मुसाफिर...

 

 

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