Gham Ho Gaye Be-Shumar Aaqa
Banda Tere Nisar Aaqa
Bigda Jaata Hai Khail Mera
Aqa Aqa Sanvar Aaqa
Manjadar pe Ake Naao dubi
De Hath ke hun mein paar Aaqa
Tooti Jaati hai Peeth Meri
Lillah ye Boj Utar Aaqa
Halka hai Agar Hamara Palla
Bhari hai Tera Waqqar Aaqa
Majboor hein ham To Fikar kya hai
Tum Ko To hai Ikhtiyar Aaqa
Mein Door hun Tum To Ho Mere Paas
Sun Lo Meri Pukaar Aaqa
Muj sa Koi Gham Zada Na Hoga
Tum sa Nahin Gham Ghusar Aaqa
Girdaab mein pad gayi hai kashti
Dooba Dooba , Utaar Aaqa
Tum Wo Ke Karam Ko Naaz Tum Se
Mein Wo Ke Badi Ko aar Aaqa
Fir Munh Na Pade Kabhi Khazan Ka
De De Aesi Bahar Aaqa
Jiski Marzi Khuda Na Taale
Mera Hai Wo Namdar Aaqa
Hai Mulk-e-Khuda Pe Jis Ka Kabza
Mera Hai Wo Kamghar Aaqa
Soya kiye nabikar bande
Roya kiye zaar zaar Aaqa
Kya Bhool hai In ke hote kehlaein
Dunya ke ye Tajdar Aaqa
Unke Adna Ghada Pe Mit Jaaein
Aese Aese Hazar Aaqa
Be Abr-e-Karam Ke Mere Dhabbhe
La Tagsiluha l Behar Aaqa
Itni Rehmat RAZA Pe Karlo
La Yaqrubuhu al Bawar Aaqa
ग़म हो गए बे-शुमार, आक़ा !
बंदा तेरे निसार, आक़ा !
बिगड़ा जाता है खेल मेरा
आक़ा ! आक़ा ! संवार, आक़ा !
मंजधार पे आ के नाव टूटी
दे हाथ कि हूं मैं पार, आक़ा !
टूटी जाती है पीठ मेरी
लिल्लाह ! ये बोझ उतार, आक़ा !
हल्का है अगर हमारा पल्ला
भारी है तेरा वक़ार, आक़ा !
मजबूर हैं हम तो फ़िक्र क्या है
तुम को तो है इख़्तियार, आक़ा !
मैं दूर हूं, तुम तो हो मेरे पास
सुन लो मेरी पुकार, आक़ा !
मुझ सा कोई ग़म-ज़दा न होगा
तुम सा नहीं ग़म-गुसार, आक़ा !
गिर्दाब में पड़ गई है कश्ती
डूबा डूबा, उतार, आक़ा !
तुम वो कि करम को नाज़ तुम से
मैं वो कि बदी को अ़ार, आक़ा !
फिर मुँह न पड़े कभी ख़िज़ाँ का
दे दे ऐसी बहार, आक़ा !
जिस की मरज़ी ख़ुदा न टाले
मेरा है वो नाम-दार आक़ा
है मुल्क-ए-ख़ुदा पे जिस का क़ब्ज़ा
मेरा है वोह कामगार आक़ा
सोया किये ना-बकार बंदे
रोया किये ज़ार-ज़ार आक़ा
क्या भूल है इन के होते कहलाएं
दुन्या के ये ताजदार आक़ा
उन के अदना गदा पे मिट जाएं
ऐसे ऐसे हज़ार आक़ा
बे-अब्र-ए-करम के मेरे धब्बे
'ला तग़्सिलुहल-बिह़ार', आक़ा !
इतनी रह़मत रज़ा पे कर लो
'ला यक़रुबुहुल-बवार', आक़ा !
बंदा तेरे निसार, आक़ा !
बिगड़ा जाता है खेल मेरा
आक़ा ! आक़ा ! संवार, आक़ा !
मंजधार पे आ के नाव टूटी
दे हाथ कि हूं मैं पार, आक़ा !
टूटी जाती है पीठ मेरी
लिल्लाह ! ये बोझ उतार, आक़ा !
हल्का है अगर हमारा पल्ला
भारी है तेरा वक़ार, आक़ा !
मजबूर हैं हम तो फ़िक्र क्या है
तुम को तो है इख़्तियार, आक़ा !
मैं दूर हूं, तुम तो हो मेरे पास
सुन लो मेरी पुकार, आक़ा !
मुझ सा कोई ग़म-ज़दा न होगा
तुम सा नहीं ग़म-गुसार, आक़ा !
गिर्दाब में पड़ गई है कश्ती
डूबा डूबा, उतार, आक़ा !
तुम वो कि करम को नाज़ तुम से
मैं वो कि बदी को अ़ार, आक़ा !
फिर मुँह न पड़े कभी ख़िज़ाँ का
दे दे ऐसी बहार, आक़ा !
जिस की मरज़ी ख़ुदा न टाले
मेरा है वो नाम-दार आक़ा
है मुल्क-ए-ख़ुदा पे जिस का क़ब्ज़ा
मेरा है वोह कामगार आक़ा
सोया किये ना-बकार बंदे
रोया किये ज़ार-ज़ार आक़ा
क्या भूल है इन के होते कहलाएं
दुन्या के ये ताजदार आक़ा
उन के अदना गदा पे मिट जाएं
ऐसे ऐसे हज़ार आक़ा
बे-अब्र-ए-करम के मेरे धब्बे
'ला तग़्सिलुहल-बिह़ार', आक़ा !
इतनी रह़मत रज़ा पे कर लो
'ला यक़रुबुहुल-बवार', आक़ा !