Koi had hai Unke Ururz ki ,
Hein Saf-aarah Sab Hooro Malak,
Ek dhoom hai Arshe Aazam par,
Mere Muhammad Pyaare
Mere Muhammad Pyaare
Ya Mustafa Ya Mujtaba ,
Hai Aaj Falak Roshan Roshan ,
Mehboob Khuda ke aate hein ,
Mere Muhammad Pyare
Mere Muhammad Pyare
Wo Sarware Kishware Risaalat ,
Naye Niraale Tarab ke Samaan ,
Wahaan falak par yahaan zameen mein ,
Udhar se Anwaar hanste aate ,
Utaar kar Unke Rukh ka Sadqaa ,
Ke Chaand Suraj machal machal kar ,
Mere Muhammad Pyare Bane hein Dulha
Qurbaan hai Shaano Azmat par ,
Jibreele Ameen haazir hokar ,
Jibreel Buraaq saja kar ke ,
Baarat Firishton ki aayi ,
Hein Saf-aarah Sab Hooro Malak,
Ek dhoom hai Arshe Aazam par,
Mere Muhammad Pyare Bane hein Dulha Dulha
Mere Muhammad Pyare Bane hein Dulha
Gubaar ban kar nisaar jaaun ,
Hamaare Dil Hooriyon ki Aankhein ,
Bahaar hai Shaadiyaan Mubaarak ,
Malak Falak Apni Apni leh mein ,
Khushi ke Badal Umat ke aaye ,
Wo Nagma-e-Naat ka samaan tha ,
Tabaarakallah hai Shaan Teri ,
Kahin to Wo Joshe Lan-Taraani ,
Bad Aye Muhammad Karin ho Ahmed ,
Nisaar Jaun Ye Kya Nida thi ,
Hijaab Uthne mein laakhon parde ,
Ajab gadi thi ke Wasle Furkat ,
Wahi hai Awwal Wahi hai Aakhir ,
Usi ke Jalwe Usi se Milne ,
Mere Muhammad Pyare Bane hein Dulha Dulha
Mere Muhammad Pyare Bane hein Dulha
Aqsa mein Sawaari jab pahunchi ,
Nabiyon ki Imaamat ab bad kar ,
Wo Kaisa haseen manzar hoga ,
Usshaq Tasawwur kar kar ke ,
Hein Saf-aarah Sab Hooro Malak,
Ek dhoom hai Arshe Aazam par,
Mere Muhammad Pyare ,
Mere Muhammad Pyare , Bane hein Dulha
Namaaze Aqsa mein tha yahi sirr ,
Ke Dast basta hein pichhe haazir ,
Nabi-e-Rehmat Shafi-e-Ummat ,
Ise bhi In Khil-aton se hissa ,
Mere Muhammad Pyare Bane hein Dulha Dulha
Mere Muhammad Pyare Bane hein Dulha
Ya Mustafa Ya Mujtaba ,
Allah ki Rehmat se Dilbar ,
Allah ka Jalwa bhi dekha ,
Meraaj ki Shab to yaad rakkha ,
Attar Isi ummid pe Ham ,
Hein Saf-aarah Sab Hooro Malak,
Ek dhoom hai Arshe Aazam par,
Mere Muhammad Pyare Bane hein Dulha Dulha
Mere Muhammad Pyare Bane hein Dulha
सरे ला-मकां से तालाब हुए सू-इ-मुंतहा वो चले नबी
कोई हद है उनके उरूज़ की , बलगल उलाबी कमालिही
हैं सफ-आरा सब हूरो मलक, और गिलमा खुल्द सजाते हैं
एक धूम है अर्शे आज़म पर, मेहमान खुदा के आते हैं
मेरे मुहम्मद प्यारे , बने हैं दूल्हा दूल्हा
मेरे मुहम्मद प्यारे , बने हैं दूल्हा
या मुस्तफा या मुज्तबा , सल्ले अला सल्ले अला
है आज फलक रोशन रोशन , हैं तारे भी जगमग जगमग
मेहबूब खुदा के आते हैं , मेहबूब खुदा के आते हैं
मेरे मुहम्मद प्यारे , बने हैं दूल्हा दूल्हा
मेरे मुहम्मद प्यारे , बने हैं दूल्हा
वो सरवरे किश्वरे रिसालत , जो अर्श पर जलवागर हुए थे
नए निराले तरब के सामां , अरब के मेहमान के लिए थे
वहाँ फलक पर यहां ज़मीं में , रची थी शादी मची थी धूमें
उधर से अनवार हस्ते आते, इधर से नफ़्हात उठ रहे थे
उतार कर उनके रुख का सदक़ा, वो नूर का बंट रहा था बाड़ा
के चाँद सूरज मचल मचल कर, जबी की खैरात मांगते थे
वही तो अब तक छलक रहा है , वही तो जोबन टपक रहा है
नहाने में जो गिरा था पानी , कटोरे तारों ने भर लिए थे
बचा जो तलवों का उनके धोवन , बना वो जन्नत का रंगो रोगन
जिन्होंने दूल्हा की पायी उतरन, वो फूल गुलज़ार नूर के थे
मेरे मुहम्मद प्यारे , बने हैं दूल्हा दूल्हा
मेरे मुहम्मद प्यारे , बने हैं दूल्हा
क़ुर्बान है शानो अज़मत पर , सोये हैं चैन से बिस्तर पर
जिब्रीले अमीन हाज़िर हो कर, मेराज का मुज़्दा सुनाते हैं
जिब्रील बुराक सजा करके , फिरदौसे बरी से ले आये
बारात फिरिश्तों की आयी, मेराज को दूल्हा जाते हैं
हैं सफ-आरा सब हूरो मलक, और गिलमा खुल्द सजाते हैं
एक धूम है अर्शे आज़म पर, मेहमान खुदा के आते हैं
गुबार बन कर निसार जाऊं, कहाँ अब उस रह-गुज़र को पाऊं
हमारे दिल हूरियों की आँखें , फिरिश्तों के पर जहां लगे थे
बहार है शादियां मुबारक , चमन को आबादियाँ मुबारक
मलक फलक अपनी अपनी लेह में , ये घर अना दिल का बोलते थे
ख़ुशी के बादल उमट के आये , दिलों के ताऊस रंग लाये
वो नगमा-इ-नात का समां था , हरम को खुद वज्द आ रहे थे
तबारकल्लाह है शान तेरी , तुजी को जैबा है बे-नियाज़ी
कहीं तो वो जोशी लन-तरानी , कहीं तकाज़े विशाल के थे
बाद अये मुहम्मद करीं हो अहमद , क़रीब आ सरवरे मुमज्जद
निसार जाऊं ये क्या निदा थी , ये क्या समां था ये क्या मज़े थे
हिजाब उठने में लाखों परदे , हर एक परदे में लाखों जल्वे
अजब गड़ी थी के वस्ले फुरकत , जनम के बिछड़े गले मिले थे
वही है अव्वल वही है आखिर , वही है बातिन वही है ज़ाहिर
उसी के जल्वे उसी से मिलने , उसी से उसकी तरफ गए थे
मेरे मुहम्मद प्यारे , बने हैं दूल्हा दूल्हा
मेरे मुहम्मद प्यारे , बने हैं दूल्हा
अक़्सा में सवारी जब पहुंची , जिब्रील ने बड़ के कही तकबीर
नबियों की इमामत अब बड़ कर , सुल्ताने जहां फरमाते हैं
वो कैसा हसीं मंज़र होगा , जब दूल्हा बना सर्वर होगा
उश्शाक़ तसव्वुर कर कर के , बस रोते ही रह जाते हैं
हैं सफ-आरा सब हूरो मलक, और गिलमा खुल्द सजाते हैं
एक धूम है अर्शे आज़म पर, मेहमान खुदा के आते हैं
मेरे मुहम्मद प्यारे , बने हैं दूल्हा दूल्हा
मेरे मुहम्मद प्यारे , बने हैं दूल्हा
नमाज़े अक़्सा में था यही सीर, अयाँ हो माना-इ-अव्वल आखिर
के दस्त बस्ता हैं पीछे हाज़िर , जो सल्तनत आगे कर गए थे
नबी-इ-रेहमत , शफी-इ-उम्मत , रज़ा पे लिल्लाह हो इनायत
इसे भी इन खिलअतों से हिस्सा , जो ख़ास रेहमत के वां बटे थे
मेरे मुहम्मद प्यारे , बने हैं दूल्हा दूल्हा
मेरे मुहम्मद प्यारे , बने हैं दूल्हा
या मुस्तफा या मुज्तबा , सल्ले अला सल्ले अला
अल्लाह की रेहमत से दिलबर , जा पहुंचे दना की मंज़िल पर
अल्लाह का जल्वा भी देखा , दीदार की लज़्ज़त पाते हैं
मेराज की शब् तो याद रक्खा, फिर हश्र में कैसे भूलेंगे
अत्तार इसी उम्मीद पे हम , दिन अपने गुज़ारे जाते हैं
हैं सफ-आरा सब हूरो मलक, और गिलमा खुल्द सजाते हैं
एक धूम है अर्शे आज़म पर, मेहमान खुदा के आते हैं
मेरे मुहम्मद प्यारे , बने हैं दूल्हा दूल्हा
मेरे मुहम्मद प्यारे , बने हैं दूल्हा