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Surah Kafiroon In Hindi | सूरह काफिरून तर्जुमा व तफसीर

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बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम  

1.कुल या अय्युहल काफिरून  

2.ला अ अबुदु मा तअ’बुदून  

3.वला अन्तुम आ बिदूना मा अ’अबुद  

4.वला अना आबिदुम मा अबत तुम  

5.वला अन्तुम आबिदूना मा अअ’बुद  

6.लकुम दीनुकुम वलिय दीन  

English 

Bismilla Hiraahma Nir Rahaeem  

1.Qul Ya Ayyuhal Kaafiroon  

2.La Aa Budu Ma Ta’budoon  

3.Wala Antum Abidoona Ma Aa’bud  

4.Wala Ana Abidum Ma Abattum  

5.Wala Antum Aabidoona Ma Aa’bud  

6.Lakum Deenukum Waliya Deen  

Arabic

1. بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ قُلْ يَا أَيُّهَا الْكَافِرُونَ
2. لَا أَعْبُدُ مَا تَعْبُدُونَ
3. وَلَا أَنْتُمْ عَابِدُونَ مَا أَعْبُدُ
4. وَلَا أَنَا عَابِدٌ مَا عَبَدْتُمْ
5. وَلَا أَنْتُمْ عَابِدُونَ مَا أَعْبُدُ
6. لَكُمْ دِينُكُمْ وَلِيَ دِينِ

hindi

1.आप कह दीजिये ए ईमान से इनकार करने वालों  

2.न तो मैं उस की इबादत करता हूँ जिस की तुम पूजा करते हो  

3.और न तुम उसकी इबादत करते हो जिसकी मैं इबादत करता हूँ  

4.और न मैं उसकी इबादत करूंगा जिसको तुम पूजते हो  

5.और न तुम ( मौजूदा सूरते हाल के हिसाब से ) उस खुदा की इबादत करने वाले हो जिसकी मैं इबादत करता हूँ  

6.तो तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन और मेरे लिए मेरा दीन  

   

Tafseer Wa Tashreeh  

रसूलुल लाह सल्लाल लाहू अलैहि वसल्लम ने जब मक्का में लोगों को  इस्लाम की तरफ बुलाना शुरू किया तो अगरचे कुछ लोगों ने ही इस्लाम कुबूल किया लेकिन मुशरिक लोगों की एक बड़ी तादाद का बुत परस्ती ( बुतों की पूजा ) पर से यकीन कम होने लगा और उन के ज़हेन में ये सवाल खड़ा होने लगा कि हम जिस मज़हब को मान रहे हैं क्या वाकई सच्चा मज़हब है ?  

मक्का के सरदारों ने जब ये हालत देखी तो मुसलमानों पर तकलीफ देने के सारे हथियार आजमाने लगे , मगर जब उन्होंने तजरबा कर लिया कि ईमान का नशा एक ऐसा नशा है जो उतारे नहीं उतरता तो उन्होंने लालच देने का और आपस में मुसलिहत का तरीका इख्तियार करने की कोशिश की |  

Al Kaafiroon  Soorah Kab Nazil Hui  

मक्का के सरदारों का एक गिरोह नबी स.अ. की खिदमत में हाज़िर हुआ और कहा : आओ हम इस बात पर सुलह कर लें कि जिस खुदा की आप इबादत करते हैं हम भी उस की इबादत किया करेंगे और जिन माबूदों की हम पूजा किया करते हैं आप भी उन की इबादत करें और तमाम मामलात में एक दुसरे के शरीक हो जाएँ तो जिस मज़हब को तुम लेकर आए हो अगर उस में खैर होगी तो हम भी इस में शरीक हो जायेंगे और जिस मज़हब पर हम चल रहे हैं अगर उस में खैर है तो तुम उस को अपना लोगे उसी मौके पर ये सूरत नाजिल हुई  

एक और रिवायत में है की उन्होंने इबादत को साल में तकसीम करने को कहा कि एक साल तुम हमारे माबूदों की इबादत करो और एक साल हम तुम्हारे खुदा की इबादत करें ( तफसीरे क़ुरतुबी )  

ज़ाहिर है ये बात कुबूल करने लायक न थी जिस तरह रौशनी और तारीकी एक जगह नहीं रह सकते उसी तरह ये भी मुमकिन नहीं कि एक शख्स एक वक़्त में तौहीद का भी क़ायल हो  

 

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