Zaeer-o-Paase Adab Rakho Hawas Jaane Do
Ankhen Andhi Hui Hai Inko Taras Jaane Do
Sukhi Jaati Hai Ummid-e-Guraba Ki Kheti
Bundiya Lakka-e-Rehmat Ki Baras Jaane Do
Hambi Chalte Hai Zara Kafeele Vaalo Thehro
Ghadhriyan Tosha-e-Ummid Ki Kas Jaane Do
Palti Aati Hai Abhi Vajd Mai Jaan-e-Shiree
Nagma-e-Qum Ka Zara kano mai Ras Jaane Do
Ae RAZA Aah Ke Yu Sehal Kate Zurm Ke Saal
Do Gadi Ki Bhi Ibadat To Baras Jaane Do
ज़ाइरो पासे अदब रख्खो हवस जाने दो
आंखें अन्धी हुई हैं इन को तरस जाने दो
सूखी जाती है उमीदे ग़ु-रबा की खेती
बूंदियां लक्क-ए-रह़मत की बरस जाने दाे
पलटी आती है अभी वज्द में जाने शीरीं
नग़्म-ए-क़ुम का ज़रा कानों में रस जाने दो
हम भी चलते हैं ज़रा क़ाफ़िले वालो ! ठहरो
गठरियां तोश-ए-उम्मीद की कस जाने दाे
दीदे गुल और भी करती है क़ियामत दिल पर
हम-सफ़ीरो हमें फिर सूए क़फ़स जाने दो
आतिशे दिल भी तो भड़काओ अदब दां नालो
कौन कहता है कि तुम ज़ब्त़े नफ़स जाने दो
यूं तने ज़ार के दरपे हुए दिल के शो’लो
शेवए ख़ाना बर अन्दाज़िये ख़स जाने दो
ऐ रज़ा आह कि यूं सह्ल कटें जुर्म के साल
दो घड़ी की भी इ़बादत तो बरस जाने दाे