मरहबा मुस्तफ़ा ! मरहबा मुस्तफ़ा !
मरहबा मुस्तफ़ा ! मरहबा मुस्तफ़ा !
मरहबा मरहबा मरहबा मरहबा
आए सरकार आए, मेरे दिलदार आए
मेरे ग़म-ख़्वार आए, मेरे लजपाल आए
आज जश्न-ए-विलादत है सरकार का
हम मनाएंगे मिल कर ब-हर-हाल भी
मौसम-ए-पुर-बहाराँ महकने लगा
और लाज़ा हुए दिल के अहवाल भी
आए सरकार आए, मेरे दिलदार आए
मेरे ग़म-ख़्वार आए, मेरे लजपाल आए
मरहबा मुस्तफ़ा ! मरहबा मुस्तफ़ा !
मरहबा मुस्तफ़ा ! मरहबा मुस्तफ़ा !
निसार तेरी चहल-पहल पे हज़ारों ईदें रबीउल-अव्वल
सिवाए इब्लीस के जहाँ में सभी तो ख़ुशियाँ मना रहे हैं
मरहबा मरहबा ! की जो गूँजी सदा
बुत-कदों में हुवा ज़लज़ला इक बड़ा
आज रोता है सुन कर के इब्लीस भी
सर पकड़ कर के बैठा है दज्जाल भी
आए सरकार आए, मेरे दिलदार आए
मेरे ग़म-ख़्वार आए, मेरे लजपाल आए
बे-सहारों की ख़ातिर सहारा है वो
ग़म के मारों के ग़म का मदावा है वो
मरहम-ए-दिल बनाया है रब ने उन्हें
सुन के ख़ुश हो गया आज बद-हाल भी
आए सरकार आए, मेरे दिलदार आए
मेरे ग़म-ख़्वार आए, मेरे लजपाल आए
मरहबा मुस्तफ़ा ! मरहबा मुस्तफ़ा !
मरहबा मुस्तफ़ा ! मरहबा मुस्तफ़ा !
ख़ूब मीलाद पर रोज़ लंगर चले
देख कर जश्न, क्यूँ ये मुनाफ़िक़ जले !
हम सजाएँगे ख़ुश हो के हर इक गली
और लुटा देंगे मीलाद पर माल भी
आए सरकार आए, मेरे दिलदार आए
मेरे ग़म-ख़्वार आए, मेरे लजपाल आए
इश्क़ तुझ को नबी और अली से नहीं !
मुझ को लगता है की तू हलाली नहीं !
मेरे दिल में तो रहते हैं प्यारे नबी
उनके असहाब भी उनकी हर आल भी
आए सरकार आए, मेरे दिलदार आए
मेरे ग़म-ख़्वार आए, मेरे लजपाल आए
मरहबा मुस्तफ़ा ! मरहबा मुस्तफ़ा !
मरहबा मुस्तफ़ा ! मरहबा मुस्तफ़ा !
चाहे फ़िरदौस हो, चाहे बेख़ुद रज़ा
ईद-ए-मीलाद पे ख़ुश है सारा जहाँ
बुलबुलों का चमन में यही विर्द है
झूमती है ख़ुशी में हर इक डाल भी
आए सरकार आए, मेरे दिलदार आए
मेरे ग़म-ख़्वार आए, मेरे लजपाल आए
मरहबा मुस्तफ़ा ! मरहबा मुस्तफ़ा !
मरहबा मुस्तफ़ा ! मरहबा मुस्तफ़ा !
शायर:
वसीम बेख़ुद माण्डलवी
नातख्वां:
मुहम्मद फ़िरदौस क़ादरी