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ऐ रसूले-अमीं, ख़ातमल-मुर्सलीं
तुझ सा कोई नहीं, तुझ सा कोई नहीं
है अक़ीदा ये अपना ब-सिद्क़ो-यक़ीं
तुझ सा कोई नहीं, तुझ सा कोई नहीं
दस्ते-क़ुदरत ने ऐसा बनाया तुझे
जुम्ला अवसाफ से ख़ुद सजाया तुझे
ऐ अज़ल के हसीं, ऐ अबद के हसीं
तुझ सा कोई नहीं, तुझ सा कोई नहीं
बज़्मे-कोनैन पहले सजाई गई
फिर तेरी ज़ात मन्ज़र पे लाई गई
सय्यिदुल-अव्वलीन, सय्यिदुल-आख़रीं
तुझ सा कोई नहीं, तुझ सा कोई नहीं
तेरा सिक्का रवां कुल जहां में हुवा
इस ज़मीं में हुवा, आसमां में हुवा
क्या अ़रब क्या अजम, सब हैं ज़ेरे-नगीं
तुझ सा कोई नहीं, तुझ सा कोई नहीं
तेरे अंदाज़ में वुसअ़तें फ़र्श की
तेरी परवाज़ में रिफ़अतें अर्श की
तेरे अन्फास में ख़ुल्द की यास्मीं
तुझ सा कोई नहीं, तुझ सा कोई नहीं
सिदरतुल-मुन्तहा रह-गुज़र में तेरी
क़ाब कौसेन गर्दे-सफ़र में तेरी
तू है हक़ के क़रीं, हक़ है तेरे क़रीं
तुझ सा कोई नहीं, तुझ सा कोई नहीं
मुस्तफ़ा मुज्तबा, तेरी मद्हो-सना
मेरे बस में नहीं, दस्तरस में नहीं
दिल को हिम्मत नहीं, लब को यारा नहीं
तुझ सा कोई नहीं, तुझ सा कोई नहीं
ऐ सरापा नफ़ीस अन्फ़से दो जहां
सरवरे-दिलबरां, दिलबरे-आशिक़ां
ढूंढती है तुझे मेरी जाने-हज़ीं
तुझ सा कोई नहीं, तुझ सा कोई नहीं
शायर:
सय्यिद नफ़ीस अल-हुसैनी शाह साहिब
तुझ सा कोई नहीं, तुझ सा कोई नहीं
है अक़ीदा ये अपना ब-सिद्क़ो-यक़ीं
तुझ सा कोई नहीं, तुझ सा कोई नहीं
दस्ते-क़ुदरत ने ऐसा बनाया तुझे
जुम्ला अवसाफ से ख़ुद सजाया तुझे
ऐ अज़ल के हसीं, ऐ अबद के हसीं
तुझ सा कोई नहीं, तुझ सा कोई नहीं
बज़्मे-कोनैन पहले सजाई गई
फिर तेरी ज़ात मन्ज़र पे लाई गई
सय्यिदुल-अव्वलीन, सय्यिदुल-आख़रीं
तुझ सा कोई नहीं, तुझ सा कोई नहीं
तेरा सिक्का रवां कुल जहां में हुवा
इस ज़मीं में हुवा, आसमां में हुवा
क्या अ़रब क्या अजम, सब हैं ज़ेरे-नगीं
तुझ सा कोई नहीं, तुझ सा कोई नहीं
तेरे अंदाज़ में वुसअ़तें फ़र्श की
तेरी परवाज़ में रिफ़अतें अर्श की
तेरे अन्फास में ख़ुल्द की यास्मीं
तुझ सा कोई नहीं, तुझ सा कोई नहीं
सिदरतुल-मुन्तहा रह-गुज़र में तेरी
क़ाब कौसेन गर्दे-सफ़र में तेरी
तू है हक़ के क़रीं, हक़ है तेरे क़रीं
तुझ सा कोई नहीं, तुझ सा कोई नहीं
मुस्तफ़ा मुज्तबा, तेरी मद्हो-सना
मेरे बस में नहीं, दस्तरस में नहीं
दिल को हिम्मत नहीं, लब को यारा नहीं
तुझ सा कोई नहीं, तुझ सा कोई नहीं
ऐ सरापा नफ़ीस अन्फ़से दो जहां
सरवरे-दिलबरां, दिलबरे-आशिक़ां
ढूंढती है तुझे मेरी जाने-हज़ीं
तुझ सा कोई नहीं, तुझ सा कोई नहीं
शायर:
सय्यिद नफ़ीस अल-हुसैनी शाह साहिब