अपनी जन्नत को ख़ुदा के लिए ! दोज़ख़ न बना
अपने माँ-बाप का तू दिल न दुखा, दिल न दुखा
मेरे मालिक, मेरे आक़ा, मेरे मौला ने कहा
अपने माँ-बाप का तू दिल न दुखा, दिल न दुखा
बाप के प्यार से अच्छी कोई दौलत क्या है !
माँ का आँचल जो सलामत है तो जन्नत क्या है !
ये हैं राज़ी तो नबी राज़ी है, राज़ी है ख़ुदा
अपने माँ-बाप का तू दिल न दुखा, दिल न दुखा
उनकी ममता ने बहर-हाल सँभाला तुझ को
किस क़दर प्यार से माँ-बाप ने पाला तुझ को
रहमत-ए-मौला से कुछ कम नहीं साया इन का
अपने माँ-बाप का तू दिल न दुखा, दिल न दुखा
जब भी देखा तो तुझे प्यार से देखा माँ ने
ख़ून-ए-दिल दूध कि सूरत में पिलाया माँ ने
तू ने इस प्यार के बदले में उसे कुछ न दिया
अपने माँ-बाप का तू दिल न दुखा, दिल न दुखा
हर मुसीबत से बचाया ये करम है कि नहीं !
बोलना तुझ को सिखाया ये करम है कि नहीं !
कैसे पाला तुझे माँ-बाप ने क्या तुझ को पता !
अपने माँ-बाप का तू दिल न दुखा, दिल न दुखा
तुझ को इंसान बनाया, तुझे तालीम भी दी
कभी देखी ही नहीं इन की मोहब्बत की कमी
क्या दिया तू ने मगर इन की मोहब्बत का सिला
अपने माँ-बाप का तू दिल न दुखा, दिल न दुखा
इन की चाहत की बदौलत है कहानी तेरी
इन की क़ुर्बानी का सदक़ा है जवानी तेरी
अपनी आवाज़ को नादान तू पत्थर न बना
अपने माँ-बाप का तू दिल न दुखा, दिल न दुखा
देख कर तेरी जवानी को ये मसरूर हुए
जो किए फ़ैसले तू ने, इन्हें मंज़ूर हुए
तेरी हर बात पे माँ-बाप ने लब्बैक कहा
अपने माँ-बाप का तू दिल न दुखा, दिल न दुखा
तेरे माँ-बाप ने शादी भी रचाई तेरी
किस क़दर धूम से बरात सजाई तेरी
तू मगर इन के ख़यालात से बेगाना रहा
अपने माँ-बाप का तू दिल न दुखा, दिल न दुखा
बीवी के आते ही चलने लगी नफ़रत की हवा
तुझ को बर्बाद न कर दे ये अदावत की हवा
यूँ गुनाहगार न बन, ख़ुद को गुनाहों से बचा
अपने माँ-बाप का तू दिल न दुखा, दिल न दुखा
बूढ़े माँ-बाप को घर से जो निकाला तू ने
कर लिया अपने मुक़द्दर को भी काला तू ने
बाज़ आ वर्ना ख़ुदा भी न तुझे बख़्शेगा
अपने माँ-बाप का तू दिल न दुखा, दिल न दुखा
जिस ने की तुझ से वफ़ा उस को सताने वाले
कल तेरे नाम पे थूकेंगे ज़माने वाले
तुझ से नाराज़ नबी हैं तो ख़ुदा भी है ख़फ़ा
अपने माँ-बाप का तू दिल न दुखा, दिल न दुखा
तेरे माँ-बाप ने किस प्यार से पाला तुझ को
ख़ुद रहे भूके, दिया मुँह का निवाला तुझ को
इन की मुट्ठी में है नादान मुक़द्दर तेरा
अपने माँ-बाप का तू दिल न दुखा, दिल न दुखा
तेरे बेटे भी कहाँ रोटियाँ देंगे तुझ को
ये भी तेरी ही तरह गालियाँ देंगे तुझ को
तू भी है साहिब-ए-औलाद ये क्यूँ भूल गया
अपने माँ-बाप का तू दिल न दुखा, दिल न दुखा
उन से अच्छी नहीं देखी कोई सूरत, क़ैसर !
है सरापा ये मोहब्बत ही मोहब्बत, क़ैसर !
काम आती है बुरे वक़्त इन की ही दुआ
अपने माँ-बाप का तू दिल न दुखा, दिल न दुखा
अपनी जन्नत को ख़ुदा के लिए ! दोज़ख़ न बना
अपने माँ-बाप का तू दिल न दुखा, दिल न दुखा
अपने माँ-बाप का तू दिल न दुखा, दिल न दुखा
शायर:
क़ैसर सिद्दीक़ी समस्तीपुरी
नात-ख़्वाँ:
रईस अनीस साबरी