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करम के बादल बरस रहे हैं, दिलों की खेती हरी भरी है / Karam Ke Baadal Baras Rahe Hain, Dilon Ki Kheti Hari Bhari Hai

 
करम के बादल बरस रहे हैं, दिलों की खेती हरी भरी है
ये कौन आया के ज़िक्र जिस का नगर नगर है गली गली है

ये कौन आया के ज़िक्र जिस का नगर नगर है गली गली है
 
ये कौन बन कर क़रार आया, ये कौन जाने-बहार आया
गुलों के चेहरे हैं निखरे निखरे, कली कली में शगुफ़्तगी है

ये कौन आया के ज़िक्र जिस का नगर नगर है गली गली है
 
दीये दिलों के जलाए रखना, नबी की महफ़िल सजाए रखना
जो राहते-दिल सुकूने-जां है, वो ज़िक्र ज़िक्रे-मुहम्मदी है

ये कौन आया के ज़िक्र जिस का नगर नगर है गली गली है
 
नबी को अपना ख़ुदा न मानो, मगर ख़ुदा से जुदा न जानो
है अहले-ईमां का ये अक़ीदा, ख़ुदा ख़ुदा है, नबी नबी है

ये कौन आया के ज़िक्र जिस का नगर नगर है गली गली है
 
न मांगो दुनिया के तुम ख़ज़ीने, चलो नियाज़ी चले मदीने
के बादशाही से बढ़के प्यारे ! नबी के दर की गदागरी है

करम के बादल बरस रहे हैं, दिलों की खेती हरी भरी है

ये कौन आया के ज़िक्र जिस का नगर नगर है गली गली है

शायर:

मौलाना अब्दुल सत्तार नियाज़ी

नातख्वां:
ज़ुल्फ़िक़ार अली हुसैनी
 
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