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मुझ पे मौला का करम है उन की नातें पढ़ता हूँ | मैं सदक़े, या रसूलल्लाह ! / Mujh Pe Maula Ka Karam Hai Un Ki Naatein Padhta Hun | Main Sadqe, Ya Rasoolall

स़ल्ले अ़ला नबिय्येना, स़ल्ले अ़ला मुह़म्मदिन
स़ल्ले अ़ला शफ़ीएना, स़ल्ले अ़ला मुह़म्मदिन

मुझ पे मौला का करम है उन की नातें पढ़ता हूँ
दामन अपना रब की रहमत से मैं हर दम भरता हूँ

मैं सदक़े, या रसूलल्लाह ! मैं सदक़े, या हबीबल्लाह !
मैं सदक़े, या रसूलल्लाह ! मैं सदक़े, या हबीबल्लाह !


धूम उन की नात-ख़्वानी की मचाते जाएँगे
'या रसूलल्लाह' का ना'रा लगाते जाएँगे


नात-ख़्वानी मौत भी हम से छुड़ा सकती नहीं
क़ब्र में भी मुस्तफ़ा के गीत गाते जाएँगे

मुझ पे मौला का करम है उन की नातें पढ़ता हूँ
दामन अपना रब की रहमत से मैं हर दम भरता हूँ

मैं सदक़े, या रसूलल्लाह ! मैं सदक़े, या हबीबल्लाह !
मैं सदक़े, या रसूलल्लाह ! मैं सदक़े, या हबीबल्लाह !

मुझ पे मौला का करम है उन की नातें पढ़ता हूँ


कितना बड़ा है मुझ पे ये एहसान-ए-मुस्तफ़ा
कहते हैं लोग मुझ को सना-ख़्वान-ए-मुस्तफ़ा

मुझ पे मौला का करम है उन की नातें पढ़ता हूँ
दामन अपना रब की रहमत से मैं हर दम भरता हूँ

मैं सदक़े, या रसूलल्लाह ! मैं सदक़े, या हबीबल्लाह !
मैं सदक़े, या रसूलल्लाह ! मैं सदक़े, या हबीबल्लाह !

मुझ पे मौला का करम है उन की नातें पढ़ता हूँ


तेरे बख़्शिश पास अपने कुछ नहीं इस के सिवा
उम्र भर नातें सुनेंगे और सुनाते जाएँगे

नात-ख़्वानी का नशा नस नस में ऐसा छा गया
क़ब्र में भी गीत, उबैद ! हम मुस्तफ़ा के गाएँगे

मुझ पे मौला का करम है उन की नातें पढ़ता हूँ
दामन अपना रब की रहमत से मैं हर दम भरता हूँ

मैं सदक़े, या रसूलल्लाह ! मैं सदक़े, या हबीबल्लाह !
मैं सदक़े, या रसूलल्लाह ! मैं सदक़े, या हबीबल्लाह !


कोई गुफ़्तुगू हो लब पर तेरा नाम आ गया है
तेरा ज़िक्र करते करते ये मक़ाम आ गया है

जिसे पी के शैख़ साअ'दी 'बलग़ल उ़ला' पुकारें

बलग़ल उ़ला बिकमालिहि, कशफ-द्दुजा बिजमालिहि
हसुनत जमीउ़ ख़िसालिहि, स़ल्लू अ़लयहि व आलिहि


जिसे पी के शैख़ साअ'दी 'बलग़ल उ़ला' पुकारें
मेरे दस्त-ए-ना-तवाँ में वही जाम आ गया है

मुझ पे मौला का करम है उन की नातें पढ़ता हूँ
दामन अपना रब की रहमत से मैं हर दम भरता हूँ

मैं सदक़े, या रसूलल्लाह ! मैं सदक़े, या हबीबल्लाह !
मैं सदक़े, या रसूलल्लाह ! मैं सदक़े, या हबीबल्लाह !

मुझ पे मौला का करम है उन की नातें पढ़ता हूँ


जितना दिया सरकार ने मुझ को, उतनी मेरी औक़ात नहीं
ये तो करम है उन का वर्ना मुझ में तो ऐसी बात नहीं

ग़ौर तो कर, सरकार की तुझ पर कितनी ख़ास इ'नायत है
कौसर ! तू है उन का सना-ख़्वाँ, ये मा'मूली बात नहीं

मुझ पे मौला का करम है उन की नातें पढ़ता हूँ
दामन अपना रब की रहमत से मैं हर दम भरता हूँ

मैं सदक़े, या रसूलल्लाह ! मैं सदक़े, या हबीबल्लाह !
मैं सदक़े, या रसूलल्लाह ! मैं सदक़े, या हबीबल्लाह !


तेरा वस्फ़ बयाँ हो किस से, तेरी कौन करेगा बड़ाई
इस गर्द-ए-सफ़र में गुम है जिब्रील-ए-अमीं की रसाई

ए रज़ा ! ख़ुद साहिब-ए-क़ुरआँ है मद्दाह-ए-हुज़ूर
तुझ से कब मुमकिन है फिर मिदहत रसूलुल्लाह की

मुझ पे मौला का करम है उन की नातें पढ़ता हूँ
दामन अपना रब की रहमत से मैं हर दम भरता हूँ

मैं सदक़े, या रसूलल्लाह ! मैं सदक़े, या हबीबल्लाह !
मैं सदक़े, या रसूलल्लाह ! मैं सदक़े, या हबीबल्लाह !


ग़म नहीं छोड़ दे ये सारा ज़माना मुझ को
मेरे आक़ा तो हैं सीने से लगाने के लिए

बख़्श दी नात की दौलत मेरे आक़ा ने मुझे
कितना प्यारा है वसीला सरकार को पाने के लिए

मुझ पे मौला का करम है उन की नातें पढ़ता हूँ
दामन अपना रब की रहमत से मैं हर दम भरता हूँ

मैं सदक़े, या रसूलल्लाह ! मैं सदक़े, या हबीबल्लाह !
मैं सदक़े, या रसूलल्लाह ! मैं सदक़े, या हबीबल्लाह !

मुझ पे मौला का करम है उन की नातें पढ़ता हूँ


सीने में भरा है तेरी नातों का ख़ज़ाना
आ'लम में लुटाता हूँ कमाई तेरे दर की

मैं सदक़े, या रसूलल्लाह ! मैं सदक़े, या हबीबल्लाह !
मैं सदक़े, या रसूलल्लाह ! मैं सदक़े, या हबीबल्लाह !


सदाएँ दुरूदों की आती रहेंगी, जिन्हें सुन के दिल शाद होता रहेगा
ख़ुदा अहल-ए-सुन्नत को आबाद रखे, मुहम्मद का मीलाद होता रहेगा

मुझ पे मौला का करम है उन की नातें पढ़ता हूँ
दामन अपना रब की रहमत से मैं हर दम भरता हूँ

मैं सदक़े, या रसूलल्लाह ! मैं सदक़े, या हबीबल्लाह !
मैं सदक़े, या रसूलल्लाह ! मैं सदक़े, या हबीबल्लाह !


अब के बरस भी होंटों पे उन की सना रही
अब के बरस भी वज्द में घर की फ़ज़ा रही

अब के बरस भी मदह के खिलते रहे गुलाब
अब के बरस भी किश्त-ए-दिल-ओ-जाँ सिवा रही

अब के बरस भी लब पे तराना था नात का
अब के बरस भी चार-सू महकी सबा रही

अब के बरस भी शहर-ए-सुख़न में थी रौनक़ें
अब के बरस भी रक़्स में मेरी सदा रही

अब के बरस भी शेर-ओ-सुख़न से थी दोस्ती
अब के बरस भी, दोस्तो ! हम्द-ओ-सना रही

अब के बरस भी तज़्किरा-ए-मुस्तफ़ा रहा
अब के बरस भी गुफ़्तुगू स़ल्ले अ़ला रही

मुझ पे मौला का करम है उन की नातें पढ़ता हूँ
दामन अपना रब की रहमत से मैं हर दम भरता हूँ


आवाज़, उबैद ! तेरी ब-फ़ैज़ान-ए-नात ही
सीनों में आशिक़ान-ए-नबी के उतर गई

मुझ पे मौला का करम है उन की नातें पढ़ता हूँ
दामन अपना रब की रहमत से मैं हर दम भरता हूँ

मैं सदक़े, या रसूलल्लाह ! मैं सदक़े, या हबीबल्लाह !
मैं सदक़े, या रसूलल्लाह ! मैं सदक़े, या हबीबल्लाह !

मुझ पे मौला का करम है उन की नातें पढ़ता हूँ



नात-ख़्वाँ:
ओवैस रज़ा क़ादरी
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