नबी-ए-मुअज़्ज़म, हबीब-ए-मुकर्रम ब-सद शान ख़ैरुल-अनाम आ रहा है
फ़लक से मलक आ गए हैं ज़मीं पर, ख़ुदा का दुरूद-ओ-सलाम आ रहा है
ज़बां पर नबी का जो नाम आ रहा है, नई ज़िंदगी का पयाम आ रहा है
मुसलसल मेरे मुस्तफ़ा पर ख़ुदा का दुरूद आ रहा है, सलाम आ रहा है
है काला-कलोटा हबश का जवाँ जो, ज़मीं जो था कल आज है आसमाँ वो
है जन्नत की रानी अब उस की दीवानी, मोहब्बत में कैसा मक़ाम आ रहा है
मुनव्वर, मुअत्तर फ़रिश्तों के लब पर यही था तराना ब-सद आशिक़ाना
मुबारक हो ! ए आमिना बी ! तेरे घर रिसालत का माह-ए-तमाम आ रहा है
समझ सोच कर ही क़दम अपने रखना, ये शहर-ए-नबी है ज़रा तू सँभलना
अदब की ज़मीं है अदब ही से चलना, वो देखो अदब का मक़ाम आ रहा है
वो शम्शुद्दुहा हैं, वो बदरुद्दुजा हैं, शफ़ीउल-वरा हैं, समझ से सिवा हैं
ये ज़िंदा अक़ीदा, ये सुथरा तरीक़ा, क़यामत की मुश्किल में काम आ रहा है
जो ज़ैनब ने पूछा ये क्या हो गया है ? तो शब्बीर बोले अभी सो गया है
के असग़र की अब तिश्नगी बुझ गई है, ये पी कर शहादत का जाम आ रहा है
वहाँ थे नज़र में, यहाँ हैं नज़र पर, वहाँ दोश पर थे, यहाँ हैं ज़मीं पर
मदीने में नाना ने जो कुछ पढ़ाया वही आज कर्बल में काम आ रहा है
ख़ुशी की लहर दौड़ जाएगी हर-सू, फ़ज़ाओं में होगी मोहब्बत की ख़ुश्बू
अचानक सर-ए-हश्र जब शोर होगा, वो देखो नबी का ग़ुलाम आ रहा है
तू दुनिया में ज़मज़म बहुत पी रहा था, नबी की मोहब्बत में तू जी रहा था
यहाँ भी तू पढ़ नात-ए-सरकार ज़मज़म ! तेरे नाम कौसर का जाम आ रहा है
शायर:
ज़मज़म फ़तेहपुरी
नातख्वां:
ज़मज़म फ़तेहपुरी