स़ल्लू अ़लयहि व आलिहि
स़ल्लू अ़लयहि व आलिहि
आए ग़म जिधर से उधर गए
मेरे बिगड़े काम संवर गए
मैंने जब ज़ुबान से ये कहा
स़ल्लू अ़लयहि व आलिहि
स़ल्लू अ़लयहि व आलिहि
मैं था क्या, मुझे क्या बना दिया
मुझे इश्क़े-अहमद अता किया
हो भला हुज़ूर की आल का
स़ल्लू अ़लयहि व आलिहि
स़ल्लू अ़लयहि व आलिहि
मरे जब सजन है यही दुआ
हो ज़ुबां पे या नबी मुस्तफ़ा
मेरे कफ़न पर हो लिखा हुवा
स़ल्लू अ़लयहि व आलिहि
स़ल्लू अ़लयहि व आलिहि
नातख्वां:
अब्दुल सलाम क़ादरी