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सरकार-ए-दो-आलम आते हैं, हर ज़ुल्म मिटाया जाएगा / Sarkaar-e-Do-Aalam Aate Hain, Har Zulm Mitaya Jaaega

सरकार-ए-दो-आलम आते हैं, हर ज़ुल्म मिटाया जाएगा
गिरतों को उठाया जाएगा, रोतों को हँसाया जाएगा

हर दौर लगाए पाबंदी, हर अहद करे नाकाबंदी
मीलाद मनाया जाता था, मीलाद मनाया जाएगा

जो हाथ लिए तलवार कभी इस्लाम मिटाने निकले थे
क़िस्मत देखो उन हाथों से इस्लाम सजाया जाएगा

मनहूस नहीं कोई भी यहाँ, हर चीज़ ख़ुदा की ख़िल्क़त है
इस्लाम दिलों में आने दो, ये फ़र्क़ मिटाया जाएगा

ईमाँ के लुटेरों से जिस ने ईमाँ की हिफ़ाज़त फ़रमाई
सदियो तक आ'ला हज़रत का एहसान मनाया जाएगा

उस दिन को सोचता रहता हूँ, कब मुझ पे करम फ़रमाएंगे
कब नूर-ए-मुजस्सम को, आक़ा ! तयबा में बुलाया जाएगा


शायर:
ग़ुलाम नूर-ए-मुजस्सम

नात-ख़्वाँ:
ग़ुलाम नूर-ए-मुजस्सम

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