ये चाँद रबीउल-अव्वल का चमकाता है, चमकाएगा
ईमान-ओ-अक़ीदत का जल्वा दिखलाता है, दिखलाएगा
ये चाँद रबीउल-अव्वल का चमकाता है, चमकाएगा
एक परचम अर्श के ऊपर है, एक का'बा पर, एक अक़्सा पर
जिब्रील के हाथों परचम-ए-हक़ लहराता है, लहराएगा
ये चाँद रबीउल-अव्वल का चमकाता है, चमकाएगा
ये सुन्नी की पहचान भी है और सीने में अरमान भी है
दीवाना नबी का दुश्मन से टकराता है, टकराएगा
ये चाँद रबीउल-अव्वल का चमकाता है, चमकाएगा
जो ग़ौस का टुकड़ा खाता है वो शेर को आँख दिखाता है
ये ग़ौस का कुत्ता शेरों पे ग़ुर्राता है, ग़ुर्राएगा
ये चाँद रबीउल-अव्वल का चमकाता है, चमकाएगा
जब अश्क़-ए-नदामत पलकों से दामन पे उतरने लगते हैं
सरकार की रहमत का दरिया लहराता है, लहराएगा
ये चाँद रबीउल-अव्वल का चमकाता है, चमकाएगा
हर शाख़ पे उन की रहमत है, हर फूल में उन की निकहत है
ये फूल है शहर-ए-तयबा का महकाता है, महकाएगा
ये चाँद रबीउल-अव्वल का चमकाता है, चमकाएगा
जो आला हज़रत वाला है, वो वलीयों का मतवाला है
और प्यार मोहब्बत से उन को समझाता है, समझाएगा
ये चाँद रबीउल-अव्वल का चमकाता है, चमकाएगा
कहते हैं इसे इकराम-ए-रज़ा ! क्या ख़ूब हुवा इनआम-ए-रज़ा !
रज़वी से आँख मिलाने में गभराता है, गभराएगा
ये चाँद रबीउल-अव्वल का चमकाता है, चमकाएगा
ईमान हो जिस का मुस्तहकम और दिल में बसे सरकार-ए-उमम
वो शीशा हो कर पत्थर से टकराता है, टकराएगा
ये चाँद रबीउल-अव्वल का चमकाता है, चमकाएगा
जिस चीज़ से शाह-ए-बतहा की उल्फ़त में कमी आ जाती है
उस शय को हिक़ारत से आशिक़ ठुकराता है, ठुकराएगा
ये चाँद रबीउल-अव्वल का चमकाता है, चमकाएगा
जो मस्लक-ए-आला-हज़रत है वो मस्लक-ए-अहल-ए-सुन्नत है
जो अस्ल में मस्लक-ए-हनफ़ीय्या कहलाता है, कहलाएगा
ये चाँद रबीउल-अव्वल का चमकाता है, चमकाएगा
वो शाफ़-ए-रोज़-ए-महशर है, वो साकी-ए-जाम-ए-कौसर है
सरकार की बख़्शिश पर शैदा इतराता है, इतराएगा
ये चाँद रबीउल-अव्वल का चमकाता है, चमकाएगा
यासीन वही, त़ाहा भी वही, मुज़्ज़म्मिल भी, मुद्दस्सिर भी
अलक़ाब का तुग़रा क़ुरआं में मुस्काता है, मुस्काएगा
ये चाँद रबीउल-अव्वल का चमकाता है, चमकाएगा
ए सुन्नी मुसलमानों ! उस से हुशियार रहो, बेदार रहो
इब्लीस का चेला मो'मिन को बहकाता है, बहकाएगा
ये चाँद रबीउल-अव्वल का चमकाता है, चमकाएगा
ईमान-ओ-अक़ीदत का जल्वा दिखलाता है, दिखलाएगा
नातख्वां:
असद इक़बाल