Ek Mein hi nahin Un par Qurbaan Zamaana hai
Jo Rabbe Do Aalam ka Mahboob Yagaana hai
Kal Pul se Hamein Jisne , khud paar lagaana hai
Zahra ka Wo Baaba hai , Hasnain ka Naana hai
Ek Mein hi nahin Un par Qurbaan Zamaana hai
Jo Rabbe Do Aalam ka Mahboob Yagaana hai
Aao Dare Zahra par Failaaye hue Daaman
Hai Nasl Kareemon ki , Lajpaal Gharaana hai
Ek Mein hi nahin Un par Qurbaan Zamaana hai
Jo Rabbe Do Aalam ka Mahboob Yagaana hai
Izzat se na mar jaaein , Kyun Naame Muhammad par
Yunhin Kisi Din Hamnein Duniya se to jaana hai
Ek Mein hi nahin Un par Qurbaan Zamaana hai
Jo Rabbe Do Aalam ka Mahboob Yagaana hai
Sarkaare Madina ki hun Pushte Panaahi mein
Duniya ki hai kya Parwaah, Dushman jo Zamaana hai
Ek Mein hi nahin Un par Qurbaan Zamaana hai
Jo Rabbe Do Aalam ka Mahboob Yagaana hai
Ye Kehke Dare Haq se , Li Maut mein kuchh Mohlat
Milaad ki Aamad hai, Mehfil ko Sajaana hai
Ek Mein hi nahin Un par Qurbaan Zamaana hai
Jo Rabbe Do Aalam ka Mahboob Yagaana hai
Mehroome Karam Isko rakhiye na Sare Maheshar
Jaisa hai Naseer aakhir, Saaeel to purana hai
Ek Mein hi nahin Un par Qurbaan Zamaana hai
Jo Rabbe Do Aalam ka Mahboob Yagaana hai
एक में ही नहीं उन पर, क़ुर्बान ज़माना है
जो रब्बे दो आलम का मेहबूब यगाना है
कल पुल से हमें जिसने , खुद पार लगाना है
ज़हरा का वो बाबा है, हसनैन का नाना है
जो रब्बे दो आलम का मेहबूब यगाना है
कल पुल से हमें जिसने , खुद पार लगाना है
ज़हरा का वो बाबा है, हसनैन का नाना है
एक में ही नहीं उन पर, क़ुर्बान ज़माना है
जो रब्बे दो आलम का मेहबूब यगाना है
आओ दरे ज़हरा पर , फैलाए हुए दामन
है नस्ल करीमों की, लाजपाल घराना है
एक में ही नहीं उन पर, क़ुर्बान ज़माना है
जो रब्बे दो आलम का मेहबूब यगाना है
जो रब्बे दो आलम का मेहबूब यगाना है
आओ दरे ज़हरा पर , फैलाए हुए दामन
है नस्ल करीमों की, लाजपाल घराना है
एक में ही नहीं उन पर, क़ुर्बान ज़माना है
जो रब्बे दो आलम का मेहबूब यगाना है
इज़्ज़त से न मर जाएं, क्यों नाम मुहम्मद पर
यूँहीं किसी दिन हमने, दुनिया से तो जाना है
एक में ही नहीं उन पर, क़ुर्बान ज़माना है
जो रब्बे दो आलम का मेहबूब यगाना है
सरकार मदीना की हूँ पश्ते पनाही में
दुनिया की है क्या परवाह, दुश्मन जो ज़माना है
एक में ही नहीं उन पर, क़ुर्बान ज़माना है
जो रब्बे दो आलम का मेहबूब यगाना है
ये कहके दरे हक़ से, ली मौत में कुछ मोहलत
मिलाद की आमद है, महफ़िल को सजाना है
एक में ही नहीं उन पर, क़ुर्बान ज़माना है
जो रब्बे दो आलम का मेहबूब यगाना है
मेहरूमे करम इसको रखिये न सरे महेशर
जैसा है नसीर आखिर, साईल तो पुराना है
एक में ही नहीं उन पर, क़ुर्बान ज़माना है
जो रब्बे दो आलम का मेहबूब यगाना है
जो रब्बे दो आलम का मेहबूब यगाना है